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________________ ३१४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ णवणोक० सव्वत्थोवा संखे०गुणहाणिक० । संखे भागहाणिकम्मंसिया संखे०गुणा । संखेगुणवड्डिक० असंखे०गुणा। संखे भागवड्डिक० संखे गुणा। असखे०भागवड्डिक० अणंतगुणा । अवढि० असंखे०गुणा । असंखे०भागहाणि० संखेगुणा । सम्मत्त-सम्मामि० सव्वत्थोवा असंखे०गुणहाणि। संखे गुणहाणिक० असंखे०गुणा । संखे०भागहाणिक० असंखे०गुणा संखे गुणा वा । असंखे०भागहाणि. असंखे०गुणा । एवं मिच्छादि०-असण्णीणं । विहंगणाणीसु छब्बीसं पयडीणं सव्वत्थोवा संखे गुणवड्डि-हाणिकम्मंसिया सरिसा। संखे०भागवड्डि-हाणिक० सरिसा संखे०गुणा । असंखे०भागवहि० असंखे०गुणा । अवट्टि० असंखे०गुणा । असंखे०भागहाणि ० संखे०गुणा । सम्मत्त-सम्मामि० मदिअण्णाणिभंगो । ६०१. आभिणि-सुद-ओहिणाणीसु मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० सव्वत्थोवा असंखे गुणहाणिक०। संखे गुणहाणिक० असंखेगुणा । संखे०भागहाणिकम्मंसिया संखे०गुणा। असंखे०भागहाणिक० असंखे०गुणा । अणंताणुबंधीणं सव्वत्थोवा असंखे०गुणहाणिक० । संखे०गुणहाणिक० विसंजोयणरासीए पहाणत्ते संखेजगुणा । महल्लहिदीए सह सम्मत्तं घेत्तूण संखे०गुणहाणि करेमाणकषाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातगुणवृद्धिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागवृद्धिकर्मवाले जीव अनन्तगुणे हैं । इनसे अवस्थितकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा असंख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे या संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार मिथ्यादृष्टि और असंज्ञियोंमें जानना चाहिये । विभंगज्ञानियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी अपेक्षा संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव समान होते हुए भी सबसे थोड़े हैं । इनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव समान होते हुए भी संख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागवृद्धिकर्मवाले जीव असख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थितकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग मत्यज्ञानियोंके समान है। ६ ६०१. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा असंख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातगुणहानिकमवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे सख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव असख्यातगुणे हैं। अनन्तानुबन्धियोंकी अपेक्षा असख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव विसंयोजना जोवराशिकी प्रधानता रहते हुए संख्यातगणे हैं। पर बड़ी स्थितिके साथ सम्यक्त्वको ग्रहण करके संख्यातगुणहानिको करनेवालो जीवराशिको प्रधानता रहते हुए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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