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________________ गा० २२] द्विदिविहत्तीए वड्ढोए अप्पाबहुअं ३०३ जत्तिया जीवा अणताणुबंधिचउक्कविसंजोयणमाढवेंति तत्तिया चेव एगसमयम्मि असंखेजगुणहाणिमवत्तव्वं च कुणंति त्ति एसो भावत्थो । * सेसाणि पदाणि मिच्छत्तभंगो । ९५८३. सेसाणं पदाणमप्पाबहुअं जहा मिच्छत्तस्स परूविदं तहा परूवेदव्वं । तं जहा - असंखेज गुणहाणिविहत्तियाणमुवरि संखे० गुणहाणिकम्मं सिया असंखेजगुणा, जगपदरस्स असंखे ० भागपमाणत्तादो । संखेजभागहाणिकम्मं सिया संखे० गुणा । संजगुणवडक मंसिया असंखे० गुणा । संखे० भागवड्डिकम्मं सिया संखे० गुणा । असंखे० भागवह्निकम्मं सिया गुणा | अदिविहत्तिकम्मंसिया असंखे ० गुणा । असंखे० भागहाणिकम्मंसिया संखे० गुणा । एवं चुण्णिसुत्तत्थपरूवणं काऊण संपहि उच्चारणा बुच्चदे | $ ५८४. अप्पाबहुगाणुगमेण दुविहो णिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण मिच्छत्त- बारसक०-णवणोक० सव्वत्थोवा असंखे ० गुणहाणिकम्मंसिया । संखे०गुणहाणिक मंसिया असंखेञ्जगुणा । संखे० भागहाणिक० संखे० गुणा । संखे० गुणवड्डिक० असंखे० गुणा । संखे ० भागव डिक० संखे० गुणा । असंखे० भागवड्डिक० अनंतगुणा । अवदिक ० असंखे० गुणा । असंखे ० भागहाणिक ० संखे० गुणा । अताणु ० चउक्कस्स सव्वत्थोवा अवत्तव्वकम्मंसिया । असंखे० गुणहाणिक० संखे० गुणा । सेसं जितने जीव अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजनाका प्रारंभ करते हैं उतने ही जीव एक समय संख्यातगुणहानि और अवक्तव्यको करते हैं । * शेष पद मिथ्यात्व के समान हैं । $ ५८३. शेष पदोंका अल्पबहुत्व जिस प्रकार मिथ्यात्व का कहा है उस प्रकार कहना चाहिये । जो इस प्रकार है- असंख्यातगुणहानिविभक्तिवालोंसे संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि उनका प्रमाण जगप्रतर के असंख्यातवें भागप्रमाण है । इनसे संख्यात भागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातगुणवृद्धिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यात भागवृद्धि कर्मवाले जीव अनन्तगुणे हैं । इनसे अवस्थितविभक्तिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इस प्रकार चूर्णिसूत्रों के अर्थका कथन करके अब उच्चारणा का कथन करते हैं। § ५८४. अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायों के असंख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातभागहानिकर्म वाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातगुणवृद्धिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यात भागवृद्धिकर्मवाले जीव अनन्तगुणे हैं । इनसे अवस्थितकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागहानिकर्म वाले जीव संख्यातगुणे है । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा अवक्तव्यकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे असंख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। शेष भंग मिथ्यात्वके 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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