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________________ २५४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ आवलि० असंख०मागो । सम्मत्त-सम्मामि०असंखे०भागहाणि सव्वद्धा । सेसहाणि० ज० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो। ४०७. पंचिंदिय-पंचिं०पज. छब्बीसं पयडीणमसंखेजभागहाणि-अवट्ठि. सव्वद्धा । तिण्णिवाड्डि-दोहाणि० ज एगस०, उक० आवलि. असंखे०भागो। असंखे० गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० संखेजा समया। अणंताणु० चउक्क० असंखे०गुणहाणिअवत्तव्ब० ज० एगस०, उक्क० आवलि. असंखे०भागो । सम्मत्त-सम्मामि० असंखे० भागहाणि सव्वद्धा चत्तारिवाड्डि-तिण्णिहाणि-अवढि०-अवत्तव्व० ज० एयस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो। एवं तस-तसपज०-पंचमण-पंचवचि०-इत्थि०-पुरिस०चक्खु०-सण्णि त्ति । ६४०८. ओरालियमिस्स० छब्बीसंपयडीणं असंखे०भागवड्डि-हाणि-अवटि. सव्वद्धा । दोवड्डि-दोहाणि० ज० एगस०, उक० आवलि. असंखे०भागो । सम्मत्तसम्मामि० असंखे०भागहाणि सव्वद्धा। तिण्णिहाणि० ज० एगस०, उक्क० आवलि. असंखे०भागो। ४०६. वेउव्वियमिस्स. छब्बीसं पयडीणमसंखे०भागहाणि-अवढि० ज० एगस०, उक्क. पलिदो० असंखे भागो। तिण्णिवड्डि-दोहाणि० ज० एगस०, उक. आवलि. असंखे०भागो । सम्मत्त-सम्मामि० असंखे०मागहाणि० जह० एगस०, उक्क० सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका काल सर्वदा है। तथा शेष हानियोंका जघन्य काल एक समयं और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। $ ४०७. पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रियपर्याप्तकोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानि और अवस्थितका काल सर्वदा है। तीन वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अनन्तानुबन्धीचतष्ककी असंख्यातगणहानि और अवक्तव्यका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका काल सर्वदा है। चार वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अवक्तव्यका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार त्रस, त्रसपर्याप्त, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, स्त्रीवेवाले, पुरुषवेदवाले, चक्षुदर्शनी और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिए। ४०८. औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितका काल सर्वदा है। दो वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका काल सर्वदा है। तथा तीन हानियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। ६४०९.वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानि और अवस्थितका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तीन वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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