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२४४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ट्ठिदिविहत्ती ३ लोग० असंखे०भागो अट्ठ-बारहचोदस० देसूणा। सम्मत्त-सम्मामि० चत्तारिहाणिक लोग० असंखे०भागो अट्टचोद्द० सव्वलोगो वा।
३९० आभिणि सुद-ओहि० छब्बीसं पयडीणं असंखे०मागहाणि-संखे०भागहाणि-संखेगुणहाणि० लोग० असंखे० भागो अढचोद्द० देसूणा । असंखे गुणहा० लोग० असंखे०भागो। णवरि अणंताणु० चउक्क० असंखे०गुणहाणि. अट्टचोद्दसभागा देसूणा । सम्मत्त-सम्मामि० असंखे०भागहाणि-संखे०भागहाणि-संखे०गुणहाणि लोग० असंखे०भागो अट्टचोद्द० देसूणा। असंखेगुणहाणि लोग० असंखे०मागो। एवमोहिदंस०-सुक्कले० सम्मादिहि त्ति । णवरि सुक्कले० चोदस० देसूणा। सम्मत्तसम्मामि० अवविद० खेत्तभंगो। चत्तारिवाडि-अवत्तव. अणंताणु०चउक० अवत्तव्व० लोग० असंखे०भागो छचोदसभागा वा देसूणा ।
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भाग और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। किन्तु इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी तीन वृद्धि और अवस्थितविभक्तिवालोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम बारह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार हानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग, त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग और सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है।
विशेषार्थ-विभङ्गज्ञानी जीव वर्तमानमें सब लोकमें नहीं पाये जाते, क्योंकि संज्ञी पञ्चेन्द्रियोंमें ही कुछ के यह ज्ञान होता है, इसलिए इनमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितपदकी अपेक्षा वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन कुछ कम आठबटे चौदह राजु और सब लोकप्रमाण कहा है। शेष सब विचार मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंके समान कर लेना चाहिए। मात्र यहाँ सब लोकप्रमाण स्पर्शन मारणान्तिक समुद्घातके समय कहना चाहिए। .
६३९०. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानि, संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। असंख्यातगुणहानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। किन्तु विशेषता यह है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहानिवालोंका स्पर्श त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानि, संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। असंख्यातगुणहानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार अवधिदर्शनवाले, शुक्ललेश्यावाले और सम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि शुक्ललेश्यावालोंने त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थितस्थितिविभक्तिका भंग क्षेत्रके समान है। चार वृद्धि और अवक्तव्य स्थितिविभक्तिवालोंने तथा अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्य स्थितिविभक्तिवालोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। .
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