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गा० २२]
वडिपरूणाए पोसणं ६३८८.मदि-सुदअण्णाणी० छब्बीसं पयडीणमसंखे०भागवड्डि-हाणि-अवट्ठि० केव. पो० ? सव्वलोगो । दोवड्डि-दोहाणि केव० पो० १ लो० असंखे०भागो अट्ठचोदस० सव्वलोगो वा । णवरि इत्थि-पुरिस० दोवड्ढि० लोग० असंखे०भागो अट्ठ-बारहचोद्द० देसूणा। सम्मत्त-सम्मामि० चत्तारिहाणि लोग० असंखे०मागो अट्ठचोदस० सव्वलोगोवा।
६ ३८९. विहंगणाणी० छब्बीसं पयडीणं तिण्णिवड्डि-तिण्णिहाणि-अवढि० लोग० असंखे०भागो अट्टचो६० सव्वलोगो वा। णवरि इत्थि-पुरिस० तिण्णिवड्डि-अवट्टि
जीवोंने अतीत कालमें कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है, इसलिए यह उक्त प्रमाण कहा है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार वृद्धि, अवस्थित और अवक्तव्य पद सम्यग्दृष्टि होते समय होते हैं, अतः इनकी अपेक्षा वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है। तथा इन दोनों प्रकृतियोंकी चार हानियाँ एकेन्द्रियादि सबके सम्भव हैं, इसलिए इनकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण और सब लोकप्रमाण कहा है। पुरुषवेदियोंमें स्त्रीवेदियोंके समान स्पर्शन बन जाता है, अतः उनका भङ्ग स्त्रीवेदियोंके समान जाननेकी सूचना की है।
६३८८ मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किय है । दो वृद्धि और दो हानिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग, त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग और सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। किन्तु इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी दो वृद्धिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम बारह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार हानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग, त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग और सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है।
विशोषार्थ- मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंका सब लोकप्रमाण स्पर्शन होनेसे इनमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितपदकी अपेक्षा स्पर्शन सब लोकप्रमाण कहा है । तथा इनकी दो वृद्धियों और दो हानियोंका प्रारम्भ क्रमसे द्वीन्द्रियादि
और संज्ञी पञ्चेन्द्रिय करते हैं और ऐसे जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, विहारादिको अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण और मारणान्तिक व उपपाद पदकी अपेक्षा सब लोक प्रमाण होनेसे यह स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। दो हानियाँ एकेन्द्रियों में भी सम्भव हैं, इसलिए भी सब लोक प्रमाण स्पर्शन बन जाता है । नारकियोंके तिर्यश्चों और मनुष्यों में मारणान्तिक समुद्घात और उपपादपदके समय तथा देवोंके स्वस्थान विहारादिके समय स्त्रीवेद
और पुरुषवेदका बन्ध सम्भव है और इनका यह सम्मिलित स्पर्शन कुछ कम बारहबटे चौदह राजु प्रमाण है, अतः स्त्रीवेद और पुरुषवेदका दो वृद्धियोंका स्पर्शन कुछ कम बारह बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है, क्योंकि उसका पहले अनेक बार स्पष्टीकरण कर आये हैं।
३८९. विभंगज्ञानियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितस्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ
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