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२३२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[हिदिविहत्ती ३ ३७५. पोसणाणु० दुविहो णिदेसो-ओघे० आदे० । ओघेण छब्बीसं पयडीणं असंखेजभागवड्डि-हाणि-अवट्ठि० केव० खेत्तं पो० ? सव्वलोगो । दोवड्डि०-दोहाणिवि. केव० पो०? लोग० असंखेजदिभागो अट्ठचो० देसूणा सबलोगो वा । असंखेजगुणहाणिवि० खेत्तभंगो। णवरि अणंताणु० चउक्क० असंखे गुणहाणि-अवत्तव्व० अट्ठचोद्द० देसूणा । इत्थि-पुरिस० दोवड्डि० लोग० असंखेजदिभागो अट्ठ-बारहचोदसभागा वा देसूणा। एइंदिएसु विगलिंदियपंचिंदिएसु कदोववादेसु संखे० गुणवड्डिविहत्तियाणं विगलिंदियसंतादो संखेज्जभागहीणहिदिसंतकम्मियएइंदिएसु विगलिदिएसुप्पण्णेसु खे०भागवड्डिविहत्तियाणं च सव्वलोगो किण्ण लब्भदे ? ण, एत्थ उववादपदविवक्खाभावादो । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं चत्तारिवाड्डि-अवढिद-अवत्तव० के० ख० पो० १ लो. असंखे०भागो अट्ठचोद्द० देसूणा । चत्तारिहाणि० के० खे० पो० १ लो० असं०भागो अट्ठचोद्द० देसूणा सबलोगो वा। एवं कायजोगि०-ओरालिय०-णस० चत्तारिक०-असं. जद०-अचक्खु०-भवसि०-आहारि ति । णवरि ओरालियकायजोगीसु छब्बोसं पयडीणं दोवड्डि-दोहाणीणं लोग० असंखे० भागो सव्वलोगो वा । अणंताणु०चउक्क०
६ ३७५. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघसे और आदेशसे। ओघकी अपेक्षा छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सब लोकका स्पर्शन किया है। दो वृद्धि और दो हानि स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है। लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा त्रसवालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग क्षेत्रका और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। असंख्यातगुणहानिस्थितिविभक्तिवालोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्य स्थितिविभक्ति का स्पर्शन त्रस नालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग है। तथा स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी दो वृद्धियोंका स्पर्शन लोकका असंख्यातवाँ भाग और बस नालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और बारह भाग है।
शंका-एकेन्द्रियोंके विकलेन्द्रिय और पंचेन्द्रियोंमें उत्पन्न होने पर संख्यातगुणवृद्धिस्थितिविभक्तिवालोंका और विकलेन्द्रियोंके सत्त्वसे संख्यातभागहानि स्थितिसत्कर्मवाले एकेन्द्रियोंके विकलेन्द्रियों में उत्पन्न होने पर संख्यागभागवृद्धिस्थितिविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्शन सब लोक क्यों नहीं प्राप्त होता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि यहाँ उपपादपदकी विवक्षा नहीं है। ___ सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार वृद्धि,अवस्थित और अवक्तव्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और त्रस नालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है । चार हानि स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है? लोकके असंख्यातवें भाग, त्रस नालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग अ क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार काययोगी, औदारिककाययोगी, नपुंसकवेदवाले, क्रोधादि चारों कषायवाले, असंयत,अचक्षुदर्शनी,भव्य और आहारक जीवोंके जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि औदारिककाययोगियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी दो वृद्धि और दो हानियोंका स्पर्शन लोकका असंख्यातवाँ भाग और सब लोक है। तथा अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहोनि
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