SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती कदाए अंतोमुहत्तमेत्ततरुवलंभादो। दोण्हं हाणीणं जह• अंतोमुहु०, उक्क० पलिदो० असंखेज्जदिभागो। असंखेज्जगुणहाणीए णत्थि अंतरं। ६३३७. ओरालियकाय० मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० असंखेज्जभोगवटि. अवट्टि०-असंखेज्जमागहाणी. जह० एगस०, उक्क. अंतोमुहु० । दोण्णिवडि-तिण्णिहाणीणं णत्थि अंतरं । अणंताणु०चउक्क० अवत्तव्व० णत्थि अंतरं । सम्मत्त-सम्मामि० चत्तारिवाड्डि०-अवढि०-अवत्तव्वाणं णत्थि अंतरं। असंखेज्जभागहाणी. जह• एगस०, उक्क० अंतोमुहुः । तिण्हं हाणीणं णस्थि अंतरं। ओरालियमिस्स० छन्वीसं पयडीणमसंखेज्जभागड्डि-अमंखेज्जभागहाणि-अवडिदाणं जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । दोवड्डिदोहाणीणं जहण्णुक्क० अंतोमुहुः । णवरि इत्थि-पुरिसवेदवज्जाणं संखेज्जमागवड्डी० जह० एयस० । हस्स-रदि-अरदि-सोग-इत्थि-पुरिस-णवंसयवेद० संखेज्जगुणवड्डीए जहण्णमंतरमेगसमओ। सम्मत्त-सम्मामि० असंखेज्जभागहाणी. जहण्णुक० एगसमओ । संखेज्जभागहाणि-संखेज्जगुणहाणी० जहण्णुक्क० अंतोमुहुः । अथवा णत्थि अंतरं । असंखेज्जगुणहाणी० णत्थि अंतरं ।। $ ३३८. वेउविकाय० छब्बीसं पयडीणमसंखेअभागवड्डि-अवविद असंखेजभागहाणीणं जह० एगस०, उक० अंतोमुहुत्वं। दोवड्डि-दोहाणीणं अणंताणुचउक्क० असंखेजगुणहाणीए अवत्तव्वं णस्थि अंतरं। सम्मत्त-सम्मामि० चत्तारिवाड्डि-अवढि०-अवत्तव्वाणं णस्थि स्थितिविभक्तिका अन्तर करके अन्तिम समयमें असंख्यातभागहानिके करनेपर असंख्यातभागहानिका अन्तर्मुहूर्तप्रमाण उत्कृष्ट अन्तर पाया जाता है। दो हानियोंका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवेंभागप्रमाण है। असंख्यातगुणहानिका अन्तर नहीं है। ६३३७. औदारिककाययोगी जीवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि, अवस्थित और असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। दो वृद्धि और तीन हानियोंका अन्तर नहीं है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कके अवक्तब्यका अन्तर नहीं है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार वृद्धि, अवस्थित और अवक्तव्यका अन्तर नहीं है । असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्त मुहूर्त है। तथा तीन हानियोंका अन्तर नहीं है। औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। दो वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। किन्तु इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदके विना शेष प्रकृतियोंकी संख्यातभागवृद्धिका जघन्य अन्तर एक समय है। हास्य, रति, अरति, शोक, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी संख्यातगुणवृद्धि का जघन्य अन्तर एक समय है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभाग. हानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है । संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूते है । अथवा अन्तर नहीं है । असंख्यातगुणहानिका अन्तर नहीं है । ३३८. वैक्रियिककाययोगियों में छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, अवस्थित और असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमहत है। दो वृद्धि और दो हानियोंका तथा अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका अन्तर नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy