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________________ गा० २२] वडिपरूवणाए कालो १६ संखेज्जमागहाणि-संखेज्जगुणहाणि-असंखेज्जगुणहाणी० ओघं। एवमणंताणु०चउकस्स । बारसक०-णवणोक० असंखेज्जभागहाणी. जह• अंतोमु०, उक्क० छावट्ठिसागरोवमाणि देखणाणि । संखज्जभागहाणि-संखज्जगुणहाणी० जहण्णुक्क. एगस० । खइय० एकवीसं पयडीणमसंखेज्जभागहाणी. जह• अंतोमु०, उक्क० तेत्तीसं सागरो. सादिरेयाणि । तिण्णिहाणी० ओघं । उवसमसम्माइट्ठी० अट्ठावीसं पयडीणमसंखेज्जभागहाणी० जहण्णुक्क० अंतोमु० । संखज्जभागहाणी० जहण्णुक्क० एगस० । अणंताणु०च उक्क० संखेन्ज गुणहाणि-असंखेज्जगुणहाणि-संखेजभागहाणीणमोघं । सासण. अट्ठावीसपयडीणमसंखज्जभागहाणा. जह० एगस०, उक्क० छ आवलियामो समऊणाओ। सम्मामि० अट्ठावीसपयडीणमसंखज्जभागहाणी० ज० एगस०, उक० अंतोमहत्तं । संखेज्जभागहाणि-संखेज्जगुणहाणी० जहण्णुक्क० एगसमओ। मिच्छाइट्ठी. छब्बीसं पयडीणं तिण्णिवाड्डि-अवट्ठाणाणमोघं । असंखेज्जभागहाणी. जह० एगस०, उक्क० एकत्तीस सागरो० सादिरेयाणि । संखेज्जभागहाणि-संखेज्जगुणहाणी० जहण्णुक्क० एगस० । सम्मत्त-सम्मामि० असंखेज्जभागहाणी० ज० एगसमो, उक्क० पजिदो० असंखेज्जदिमागो। संखेज्जभागहाणि-संखज्जगुणहाणि-असंखेज्जगुणहाणी० ओघं । और असंख्यातगुणहानिका काल ओघके समान है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए । बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल अन्तमुहर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम छयासठ सागर है। संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें इक्कीस प्रकृतियों की असंख्यातभागहानका जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। तीन हानियोंका काल ओघके समान है। उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। संख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कको संख्यातगुणहानि, असंख्यातगुणहानि और संख्यातभागहानिका काल आघक समान है। सासादनसम्यग्दृष्टियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल एक समय कम छहावली है। सम्यग्मिथ्याष्टियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंका असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहते है। संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। मिथ्याष्टियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि और अवस्थानका काल ओघके समान है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल साधिक इकतीस सागर है। संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। संख्यातभागहानि, संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका काल ओषके समान है। विशेषार्थ-वेदकसम्यक्त्वका जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम छयासठ सागर है, अतः इनमें असंख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण कहा है । क्षायिकसम्यक्त्वका काल ता सादि-अनन्त है पर संसार अवस्थाकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। अतः इसमें असंख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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