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________________ १५० जयधवलास हिदे कसायपाहुडे [ द्विदिविहत्ती! मोघं । णवरि असंखेजभागहाणी ० जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखख दिभागो । ओरालिय० जोगीस बावीसवास सहस्साणि देणाणि । ओरालियमिस्स० छव्वीसं पयडीणं तिण्णिव ड्डि-तिष्णिहाणि अवद्वाणाणं पंचिदियतिरिक्ख अपजत्तभंगो। णवरि इत्थि - पुरिसवेदवजाणं सव्वकम्माणं संखेजभागवड्डीए जह० एगस ०, उक्क० वे समया । सम्मत्तसम्मामि० चदुण्हं हाणीणं पंचिदियतिरिक्ख अपजत्तभंगो । ९३०२. वेउव्वियकाय० छव्वीसं पयडीणं तिण्णिवड्डि-तिष्णिहाणि अवद्वाणाणं विदियपुढ विभंगो | णवरि असंखेज्जभागहाणी० जह० एगस ०, उक्क० अंतोमुहु० । अणताणु ० चउक्क० असंखेज्जगुणहाणी अवत्तन्वं ओघं । सम्मत्त सम्मामि० सव्वपदाणमोघं । णवरि असंखेज्जभागहाणी० जह० एगस०, उक्क० अंतोमुहु० | वेव्वियमिस्स० ओरालिय मिस्स ० भंगो | णवरि छव्वीसं पयडीणं संखेज्जभागवड्डीए सत्तणोकसायाणं संखज्जगुणवड्डी च वे समया णत्थि । सम्मत्त ० - सम्मामि० चदुण्हं हाणीणमोरालियमिस्स० भंगो | O ९ ३०३. कम्मइय० छन्वीसं पयडीणमसंखेज्जभागवड्डि-अवट्ठाणाणं जह० एगस०, उक्क० वेसमया । वेवड्डि-दोहाणीणं ज० उक० एस० । असंखेज्जभागहाणी ० ज० एगसमओ, उक्क० वे समया । सम्मत्त ० - सम्मामि० चदुष्णं हाणीणमोघं । णवरि असं कथन के समान है । किन्तु इतना विशेषता है कि असंख्यात भागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । औदारिककाययोगियों में कुछ कम बाईस हजार वर्ष है। औदारिक मिश्र काययोगियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थानका भंग पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त कोंके समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदसे रहित शेष सब कर्मोंकी संख्यातवृद्धिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार हानियोंका भंग पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तकों के समान है । ९३०२. वैक्रियिककाययोगियों में छब्बीस प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थानका भंग दूसरी पृथिवीके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यात भागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी असंख्यात - गुणहानि और वक्तव्यका काल ओघ के समान है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के सब पदोंका कथन ओघ के समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यात भागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंका भंग औदारिकमिश्र काययोगियों के समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि छब्बीस प्रकृतियोंकी संख्यात भागवृद्धिका और सात नोकषायों की संख्यातगुणवृद्धिका काल दो समय नहीं है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार हानियोंका भंग औदारिकमिश्रकाययोगियों के समान है । § ३०३. कार्मणकाययोगियों में छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यात भागवृद्धि और अवस्थानका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय है । दो वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । असंख्यात भागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार हानियोंका काल ओघके समान है । किन्तु इतनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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