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________________ १७६ गा०२२] वडिपरूवणाए कालो F२६९. पंचिंदिय-पंचिंदियपज्जत्ताणमोघं । णवरि संखेज्जभाग-गुणवड्डीए जहण्णु० एगसमओ। वे समया णस्थि, किंतु हस्स-रदि-अरदि-सोगित्थि-पुरिस-णqसयवेदाणं संखेज्जगुणवड्डीए उक० वे समया। पंचिंदियअपज्ज०-तसअपज्ज. पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो । णवरि तसअपज्ज० मिच्छत्त-सोलसक०-भय-दुगुंछ० दोवड्डी० ओघं । ३००. जोगाणुवादेण पंचमण-पंचवचिजोगीसु मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० असंखेज्जभागवड्ढि०-अवडि. ओघं। संखेज्जभागवड्डि-संखेज्जगुणवड्डि० जहण्णुक्क० एगस० । असंखेज्नजागहाणी० जह० एगस०, उक्क० अंतोमुहु० । संखेज्जमागहाणिसंखेज्जगुणहाणि-असंखेज्जगुणहाणीणमोघं। सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमोघं। णवरि असंखेज्जभागहाणी० जह० एयस०, उक० अंतोमु०।। ६३०१. कायजोगि-ओरालियकायजोगीसुमिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० असंखेजभागवड्डि-संखेजभागवड्डि-संखेजगुणवड्डि-अवढि० ओघं। णवरि ओरालियकाय. जोगीसु संखेजभागवड्डि संखेजगुणवड्डीणं वे समया णत्थि, एगसमओ चेव । असंखेजभागहाणी० जह० एयस०, उक० पलिदो० असंखजदिभागो। णवरि ओरालियकाय. जोगीसु वावीसवाससहस्साणि देसूणाणि । संखजभागहाणि-संखजगुणहाणि-असंखञ्जगुणहाणीणमणंताणु०चउक० अवत्तव्वस्स च ओघं । सम्मत्त० सम्मामि० सव्वपदाण २६९. पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके ओघके समान जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि संख्यातभागवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धिकाजघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। दो समय नहीं है। किन्तु हास्य, रति, अरति, शोक, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी संख्यातगुणवृद्धिका उत्कृष्ट काल दो समय है। पंचेन्द्रिय अपर्याप्त और त्रस अपर्याप्त जीवोंके पंचेन्द्रिय तियच अपर्याप्तकोंके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि त्रस अपर्याप्तकोंके मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी दो वृद्धियोंका काल अोधके समान है।। ६३००. योगमार्गणाके अनुवादसे पाँचों मनोयोगी और पाँचों वचनयोगियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि और अवस्थितका काल ओघके समान है। संख्यातभागवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। असंख्यात. भागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। संख्यातभागहानि, संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका काल ओघके समान है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका कथन ओघके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। ६३०१. काययोगी और औदारिककाययोगीजीवोंमें मिथ्यात्व,सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि और अवस्थितका काल ओघके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि औदारिककाययोगियोंमें संख्यातभागवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धिका काल दो समय नहीं है किन्तु एक समय ही है । असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। किन्तु इतनी विशेषता है कि औदारिककाययोगियोंमें कुछ कम बाईस हजार वर्षे है । संख्यातभागहानि, संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका तथा अनन्तानुबन्धीचतुष्कके अवक्तव्यका काल ओघके समान है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके सब पदोंका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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