________________
१६६
गा० २२]
वडिपरूवणाए कालो * अवहिदहिदिविहत्तिया केवचिरं कालादो होति । .. ६२८५. सुगममेदं। * जहणणेण एगसमयो ।
$ २८६. भुजगारमप्पदरं वा कुणंतेण एयसमयमवद्विदं कादण विदियसमए भुजगारे अप्पदरे वा कदे जहण्णेण अवढिदस्स एगसमओ। __ * उकस्सेण अंतोमुहत्तं।
$ २८७. तं जहा-वड्ढेि हाणिं वा काऊण अवट्ठाणम्मि पडिय अंतोमुहुत्तं तत्थ ठाइदूण भुजगारे अप्पदरे वा कदे अवडिदस्स अंतोमुहुत्तमेत्तो उक्कस्सकालो होदि ।
* सेसाणं पि कम्माणमेदेण वीजपदेण णेदव्वं ।।
$ २८८. एदेण वयणेण सुत्तस्स देसामासियत्तं जेण जाणाविदं तेण चउहं गईणं उत्तुचारणाबलेण एलाइरियपसाएग य सेसकम्माणं परूवणा कीरदे । कालाणुगमेण दुविहो णिद्देसो-ओघे० आदेसे० । ओघे० मिच्छत्त० तिण्णि वड्डि० जह० एगसमओ, उक० वे समया। असंखेजभागहाणी. जह० एगसमओ, उक्क० तेवहिसागरोवमसदं सादिरेयं । संखेजभागहाणी० जह० एयसमओ, उक्क० उक्कस्ससंखेजं दुरूवूणयं । संखेजगुणहाणी० असंखेजगुणहाणी० जहण्णुक्क० एगसमओ। अवढि० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । एवं तेरसक० । णवरि असंखेजभागवड्डीए जह० एगसमओ, उक्क० सत्तारस
* मिथ्यात्वकी अवस्थित स्थितिविभक्तिका कितना काल है ? ६२८५. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल एक समय है।
६२८६. भुजगार या अल्पतरको करनेवाले किसी जीवके एक समयतक अवस्थित करके दूसरे समयमें भुजगार या अल्पतरके करनेपर अवस्थितस्थितिविभक्तिका जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है।
* उत्कृष्ट काल अन्तर्महत है।
६२८७. जो इस प्रकार है-वृद्धि या हानिको करके और अवस्थितमें पड़कर तथा अन्तर्मुहूतकालतक वहाँ रहकर भुजगार या अल्पतरके करनेपर अवस्थितका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होता है।
* शेष कर्मोकी भी वृद्धि आदिका काल इसी बीजपदके अनुसार जान लेना चाहिये ।
६२८८. इस वचनसे चूंकि सूत्रका देशामर्षकपना जता दिया, अतः उच्चारणाके बलसे और एलाचार्यके प्रसादसे चारों गतियोंमें शेष कर्मोंकी प्ररूपणा करते हैं-कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश। उनमेंसे ओघकी अपेक्षा मिथ्यात्वकी तीन वृद्धियोंका जघन्य काल एक समय है तथा उत्कृष्ट काल दो समय है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक • समय और उत्कृष्ट काल साधिक एक सौ त्रेसठ सागर है। संख्यातभागहानिका जघन्य काल एक • समय और उत्कृष्ट काल दो कम उत्कृष्ट संख्यात प्रमाण है। संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुण* हानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवास्थतका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार तेरह कषायोंका जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यात
२२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org