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________________ गा० २२] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिअप्पाबहुअं १०१ अड्डाइजपोग्गलपरियझेसु किं लभामो त्ति पमाणेणोवट्टिय फलेण गुणिदे असंखेजलोगमेत्तपोग्गलपरियट्टपमाणा चदुगदिणिगोदजीवा होति । एदे च अदीदकालादो अणंतगुणहीणा; तत्थाणंतपोग्गलपरियट्ठवलंभादो । १८५. तं जहा-अदीदकाले एयजीवस्स सव्वत्थोवा भावपरियट्टवारा । भवपरियदृणवारा अणंतगुणा । कालपरियदृवारा अणंतगुणा । खेत्तपरियट्टवारा अणंतगुणा। पोग्गलपरियहवारा अणंतगुणा। एदस साहणट्ठमप्पाबडुगं वुच्चदे । तं जहा-सव्वत्थोवो पोग्गलपरियट्टकालो । खेत्तपरियट्टकालो अणंतगुणो । कालपरियट्टकालो अणंतगुणो । भवपरियट्टकालो अणंतगुणो। मोवपरियट्टकालो अणंतगुणो त्ति । तदो सिद्धो दिलुतो । एदेहि अणंतसम्मत्तचरमिच्छादिट्ठीहितो पलिदोवमस्स असंखेजदिमागमेत्ता भुजगारं कुणमाणेहिंतो असंखेजगुणा अवत्तव्वं करेंति ति सिद्धं । * अप्पदरहिदिविहत्तिया असंखेजगुणा। १८६. को गुणगारो ? आवलियाए असंखेजदिभागो। केण कारणेण ? उज्वेल्लमाणमिच्छादिट्ठीहि सह सयलवेदगुवसमसासणसम्मामिच्छादिट्ठीणं गहणादो। अणंतोवड्डपोग्गलपरियट्टसंचिदरासीदो अवत्तव्वं कुणमाणा अप्पदरविहत्तिएहितो परिवर्तनोंमें कितने प्राप्त होंगे ? इस प्रकार इच्छाराशिको प्रमाणराशिसे भाजित करके जो लन्ध आवे उसमें फलराशिसे गुणित करने पर असंख्यात लोक पुद्गल परिवर्तनप्रमाण चतुर्गतिनिगोद जीव प्राप्त होते हैं। ये जीव अतीत कालसे अनन्तगुणे हीन हैं, क्योंकि अतीत कालमें अनन्त पुद्गल परिवर्तन प्राप्त होते हैं। ६१८५. खुलासा इस प्रकार है-अतीत कालमें एक जीवके भाव परिवर्तनवार सबसे थोड़े हुए हैं। इनसे भवपरिवर्तनवार अनन्तगुणे हुए हैं। इनसे काल परिवर्तनवार अनन्तगुणे हुए हैं। इनसे क्षेत्रपरिवर्तनवार अनन्तगुणे हुए हैं। इनसे पुद्गल परिवर्तनवार अनन्तगुणे हुए हैं । अब इसकी सिद्धिके लिये अल्पबहुत्वको कहते हैं। जो इस प्रकार है-पुद्गलपरिवर्तनका काल सबसे थोड़ा है। इससे क्षेत्र परिवर्तनका काल अनन्तगुणा है। इससे काल परिवर्तनका काल अनन्तगुणा है। इससे भव परिवर्तनका काल अनन्तगुणा हे। इससे भावपरिवर्तनका काल अनन्तगुणा है, इसलिये दृष्टान्तकी सिद्धि होती है। इस सम्यक्त्वचर अनन्त मिथ्यादृष्टि जीवराशिसे पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण जीव और भुजगार स्थिति विभक्तिको करनेवाले जीवोंसे असंख्यातगुणे जीव अवक्तव्यस्थितिविभक्तिको करते हैं यह सिद्ध हुआ। * अल्पतरस्थितिविभक्ति करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । ६ १८६. शंका-गुणकारका प्रमाण क्या है ? समाधान-पावलीका असंख्यातवां भाग गुणकार का प्रमाण है। शंका-इसका क्या कारण है ? समाधान-क्योंकि यहाँ पर उद्वेलना करनेवाले मिथ्यादृष्टि जीवोंके साथ सभी वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका ग्रहण किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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