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________________ ६६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ एगसमयसंचिदभुजगारमेत्तो लब्मदि तो अवट्ठिदकालम्मि केत्तियं लभामो ति पमाणेणिच्छागुणिदफले ओवडिदे अवद्विदविहत्तियरासी होदि, तेणेसो भुजगारविहत्तिएहितो असंखे गुणो। * अप्पदरहिदिविहत्तिया संखेजगुणा। १८०. कुदो ? अवद्विदहिदिबंधकालादो अप्पदरहिदिबंधकालस्स संखेज्जगुणत्तादो। किं कारणं ? एगद्विदीए पाओग्गहिदिबंधझवसाणट्ठाणेसु चेव अवद्विदद्विदिविहत्तिया परिणमंति, अण्णहा द्विदिवंधस्स अवढिदत्तविरोहादो । अप्पदरविहत्तिया पुण तत्तो हेडिमसव्वहिदीणं हिदिवंधज्झवसाणट्ठाणेसु परिणमंति तेण ते तत्तो संखेज्जगुणा । जदि अवद्विदविहत्तियाणमेगद्विदीए द्विदिबंधज्झवसाणट्टाणाणि चेव विसओ तो हेद्विमअसंखेज्जद्विदीणं द्विदिबंधज्झवसाणट्ठाणेसु परिणमंता अप्पदरविहत्तिया तत्तो असंखेज्जगणा किण्ण होंति ? ण, संखेज्जवारमप्पदरं कादण सइमवद्विदट्ठिदिबंधकरणादो। संते संभवे असंखेज्जवारमप्पदरहिदिसंतकम्मं किण्ण कुणदि ? साहावियादो । ण च सहावो पडिबोयणाजोग्गो अन्धवत्थावत्तीदो। जेत्तिओ एगहिदिबंधकालो सव्वुक्कस्सो अस्थि तत्तो एक समयमें यदि एक समय द्वारा संचित हुई भुजगार स्थितिबन्धरूप अनन्त जीवराशि प्राप्त होती है तो अवस्थित कालमें कितनी प्राप्त होगी इसप्रकार इच्छाराशिसे फलराशिको गुणित करके और उसमें प्रमाणराशिका भाग देनेपर अवस्थित स्थितिविभक्तिवाली जीवराशि प्राप्त होती है। अतः यह राशि भुजगार स्थितिविभक्तिवाली जीवराशिसे असंख्यातगुणी है यह सिद्ध हुआ। * अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीव संख्यातगणे हैं। ६१८०. क्योंकि अबस्थितस्थितिबन्धके कालसे अल्पतर स्थितिबन्धका काल संख्यातगुणा है। इसका क्या कारण है । आगे इसे बताते हैं-एक स्थितिके योग्य स्थितिबन्धाध्यवसान स्थानोंमें ही अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीव परिणमन करते रहते हैं, अन्यथा स्थितिबन्धके अवस्थित होने में विरोध आता है। परन्तु अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीव उससे नीचेकी सभी स्थितियोंके योग्य स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंमें परिणमन करते रहते हैं अतः अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीव अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीवोंसे संख्यातगुणे होते हैं। शंका-यदि अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीव एक स्थितिके योग्य स्थितिबन्धाध्यवसान स्थानमें ही रहते हैं तो नीचेकी असंख्यात स्थितियोंके योग्य स्थितिबन्धाध्यवसान स्थानोंमें परिणमन करनेवाले अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीव अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीवोंसे असंख्यातगुणे क्यों नहीं होते हैं ? समाधान-नहीं, क्योंकि जीव संख्यातवार अल्पतर बन्धको करके एक बार अवस्थित स्थितिबन्धको करता है, अतः अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीवोंसे अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे नहीं होते हैं। शंका-संभव होते हुए जीव असंख्यातबार अल्पतर स्थितिसत्कर्मको क्यों नहीं करता है ? समाधान-ऐसा स्वभाव है । और स्वभाव दूसरेके द्वारा प्रतिबोध करनेके योग्य नहीं होता, अन्यथा अव्यवस्था प्राप्त होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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