________________
जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
[ द्विदिविहत्ती ३
एवमादादि जाव अवराइद० खइय० दिट्ठि ति । मणुसपज्ज० - मपुसिणी० उक्क० अणुक्क ० केत्ति ०१ संखेज्जा । एवं सव्वहः- आहार० - आहारमिस्स ० - अवगद ० - अकसा - मणपज्ज० - संजद० - समाइय-छेदो०- परिहार० - सुहुम ० - जहाक्खादः ।
६२
एवमुक्कस्सओ परिमाणाणुगमो समत्तो ।
$ १०७. जहणए पदं । दुविहो णिद्देसो — घेण आदेसेण य । तत्थ श्रघेण मोह ० ज के ० १ संखेज्जा । अज० के० ? अांता । एवं कायजोगि०ओरालि०-णवुं स०- चत्तारिकसाय- अचक्खु ० - भवसि० - आहारि त्ति
·
।
$ १०८. आदेसेण रइएस मोह० ज० अज० केत्तिया ? असंखेज्जा । एवं पढमपुढवि० - सव्वपंचिंदिय – तिरिक्ख - मणुसअपज्ज० - देव० - भवण० - वाण० - सव्वविगलिंदिय - पंचिंदियअपज्ज० - चत्तारिकाय - तस अपज्जतेति ।
तकके देव और क्षायिक सम्यग्दृष्टि जोवों के जानना चाहिये । मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियों में उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धि देव, हारक काययोगी, आहारकमिश्र काययोगी, अपगतवेदवाले, अकषायी, मन:पर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापना संयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्म सांपरायिकसंयत और यथाख्यातसंयत जीवोंके कहना चाहिये ।
विशेषार्थ - इसमें ओघ और आदेशसे उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिवाले जीवोंकी संख्या बतलाई गई है । घसे उत्कृष्ट स्थितिवाले जीव असंख्यात और अनुत्कृट स्थितिवाले जीव अनन्त हैं । तथा देशसे संख्याकी प्ररूपणा चार भागों में बट जाती है । कुछ मार्गणाएं अनन्त संख्यावाली हैं जिनमें प्ररूपणा घटित हो जाती है । कुछ मार्गणाएं असंख्यात संख्यावाली हैं। जिनमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट दानों स्थितिवाले असंख्यात हैं । कुछ मार्गणाएं असंख्यात संख्यावाली हैं परन्तु उनमें उत्कृष्ट स्थितिवाले जीव संख्यात हैं और अनुत्कृष्ट स्थितिवाले जीव असंख्यात हैं । तथा कुछ मार्गणाएं संख्यात संख्यावाली हैं जिनमें उत्कृष्ट स्थितिवाले और अनुत्कृष्ट स्थितिवाले दोनों संख्यात हैं । मार्गणाओंके नाम मूलमें गिनाये हैं ।
इस प्रकार उत्कृष्ट परिमाणानुगम समाप्त हुआ ।
१०७. अब जघन्य परिमाणानुगमका प्रकरण है ? उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा मोहनीयको जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । इसी प्रकार काययोगी, औदारिककाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चारों कषायवाले, अचतुदर्शनवाले, भव्य और आहारक जीवोंके जानना चाहिये ।
१०८. आदेशकी अपेक्षा नारकियों में मोहनीयकी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । इसी प्रकार पहली पृथिवीके नारकी, सभी पंचेन्द्रिय तिर्यंच, लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य, सामान्य देव, भवनवासी, व्यन्तर, सभी विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक, पृथि'बीकायिक आदि चार स्थावर काय, और नस लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंका परिमाण जानना चाहिये ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org