SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० २२ ] हिदिविहत्तीए परिमाण १०४. परिमाणाणुगमो दुविहो ... जहण्णो उक्कस्सओ चेदि। उक्कस्से पयदं। दुविहो णिद्देसो--ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण मोह० उक्कस्सहिदि. विहत्तिया जीवा केत्तिया ? असंखेज्जा । अणुक्क० केत्तिया ? अणंता । एवं तिरिक्खसव्वएइंदिय-वणप्फदि०-णिगोद०-कायजोगि०-ओरालि–ओरालियमिस्स-कम्मइय-- णवुस०-चत्तारिकसाय०-मदि-सुदअण्णाण -असंजद०-अचक्खु०-तिण्णिले०-भवसि०अभवसि०-मिच्छा०-असण्णि०-आहारि०-अणाहारि त्ति । १०५. आदेसेण रइएसु मोह० उक्क० अणुक्क० केत्तिया ? असंखेज्जा । एवं सत्तपुढवि०-सव्वपंचिंदियतिरिक्ख-मणुसअपज्ज०-देव०-भवणादि जाव सहस्सार०सव्वविगलिंदिय-सव्वपंचिंदिय-चत्तारिकाय-सव्वतस-पंचमण-पंचवचि०--वेउव्विय०वेउव्वियमिस्स०-इत्थि०-पुरिस०-विहंग०-आभिणि०-सुद०-अोहि०-संजदासंजद-चक्खु० ओहिदंस-तिण्णिले०-सम्मादि०-वेदय०-उवसम०-सासण-सम्मामि०-सण्णि त्ति । $१०६. मणुस. मोह. उक्क. के. ? संखेजा। अणुक्क. असंखेज्जा । मनःपर्यययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत और यथाख्यातसंयत जीवोंके कहना चाहिये । इस प्रकार भागाभागानुगम समाप्त हुआ। ६१०४ परिमाणानुगम दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उनमेंसे उत्कृष्ट परिमाणानुगमका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। इसी प्रकार तिर्यंच, सभी एकेन्द्रिय, वनस्पतिकायिक, निगोद, काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चारों कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, कृष्ण आदि तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी, आहारक और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये। $ १०५. आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें मोहनीयको उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंके नारकी, सभी पंचेन्द्रियतिर्यंच, लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य, सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार तकके देव, सभी विकलेन्द्रिय, सभी पंचेन्द्रिय, पृथिवीकायिक आदि चार कायवाले, सभी त्रस, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभंगज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, संयतासंयत, चक्षदर्शनवाले, अवधिदर्शनवाले, पीत आदि तीन लेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिये। ६१०६. मनुष्योंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार आनतसे लेकर अपराजित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy