SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पू८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ ६८. भागाभागाणुगमो दुविहो-जहण्णो उक्कस्सो चेदि। तत्थ उक्कस्से पयदं। दुविहो णिसो-अोघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण मोह० उक्कस्सहिदिविहत्तिया जीवा सव्वजीवाणं केवडियो भागो ? अणंतिमभागो । अणुक्क० सव्वजी० के० भागो ? अणंता भागा। एवं तिरिक्ख०-सव्वएइंदिय-वणप्फदि०-णिगोद०काययोगि०-ओरालि०-ओरालियमिस्स-कम्मइय-णवुस०--चत्तारिकसाय-मदि-सुदअण्णाण-असंजद०-अचक्खु०-तिण्णिलेस्सा-भवसिद्धि०-अभव-मिच्छा०-असण्णिआहारि०-अणाहारि त्ति । हह आदेसेण णेरइएस मोह० उक० सव्वजी० के० भागो ? असंखे० भागो। अणुक्क० सव्वजी० केवडिओ भागो ? असंखेज्जा भागा। एवं सव्वपुढवि०सव्वपंचिं०तिरिक्ख-मणुस-मणुसअपज्ज०-देव-भवणादि जाव अवराइद०-सव्वविगलिंदिय-सव्वपंचिंदिय-सव्वपुढवि०-सव्वाउ०-सव्वतेउ०-सव्ववाउ०-बादरवणप्फदि० विशेषार्थ उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा भंगविचयका कथन करते समय ओघ और आदेशसे जिन भंगोंको पहले बतला आये हैं वे भंग यहां जघन्य और अजघन्य स्थितिकी अपेक्षा भी उसी प्रकार बन जाते हैं। किन्तु सामान्यतिर्यंच और एकेन्द्रियोंसे लेकर अनाहारक तक मूलमें गिनाई हुई कुछ मार्गणाएं ऐसी हैं जिनमें जघन्य स्थितिवाले बहुत जीव और अजघन्य स्थितिवाले बहुत जीव नियमसे पाये जाते हैं, अतः यहां (१) मोहनीयकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले और अविभक्तिवाले नाना जीव नियमसे हैं। (२) मोहनीयकी अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले और अविभक्तिवाले जीव नियमसे हैं ये दो भंग ही प्राप्त होते हैं। इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचयानुगम समाप्त हुआ। SE८. भागाभागानुगम दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उनमें से उत्कृष्ट भागाभागानुगमका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघनिर्देशकी अपेक्षा मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्त बहुभाग हैं। इसी प्रकार तिर्यंच, सभी एकेन्द्रिय, वनस्पतिकायिक, निगोद जीव, काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, नपुंसकवेदवाले, क्रोधादि चारों कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनवाले, कृष्ण आदि तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी, आहारक और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये । ६६. आदेशनिर्देशकी अपेक्षा नारकियोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं। अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंके नारकी, सभी पंचेन्द्रियतिर्यंच, सामान्य मनुष्य, लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य, सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर अपराजित तकके देव, सभी विकलेन्द्रिय, सभी पंचेन्द्रिय, सभी पृथिवीकायिक, सभी जलकायिक, सभी अग्निकायिक, सभी वायुकायिक, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy