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________________ गा० २२ ] हिदिविहत्तीए अंतरं ८१. किण्ह०-णील०-काउ० मोह० जहण्णहिदी ज० एगसमो, उक्क० अंतीमु० । अज० जह• एगसमो, उक्क० सगहिदी । तेउ० सोहम्मभंगो। पम्म० सहस्सारभंगो। १८२. उवसम०-सम्मामि० आहारमिस्सभगो। सासण. मोह० जहण्णहिदी जहएणुक्क० एगसमओ। अजह० जह० एगसमो, उक्क० छ प्रावलियाओ। सण्णि. पुरिसभंगो । आहार० मोह. जहण्णहिदी जहष्णुक० एगसमओ। अज० ज० खुद्दाभवग्गहणं तिसमऊणं । उक्क० सगहिदी । अणाहार० कम्मइयभंगो। व एवं कालाणुगमो समत्तो । ___ ८३. अंतराणुगमो दुविहो- जहण्णमुक्कस्सं चेदि । उक्कस्से पयदं । प्रमाण है यह स्पष्ट ही है । चक्षुदर्शनवालोंमें त्रस पर्याप्त मुख्य हैं, अतः चक्षुदर्शनके कथनको त्रसपर्याप्तकोंके समान कहा। ८१. कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावाले जीवोंके मोहनीयकी जघन्य स्थितिका जघन्य सत्त्वकाल एक समय और उत्कृष्ट सत्त्वकाल अन्तमुहूर्त है । तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य सत्त्वकाल एक समय और उत्कृष्ट सत्त्वकाल अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। पीतलेश्यावाले जीवोंके सौधर्मस्वर्गके समान जानना चाहिए। पद्मलेश्यावाले जीवोंके सहस्रारस्वर्गके समान जानना चाहिये। ९८२. उपशस सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंके समान जानना चाहिए । सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके मोहनीयकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट सत्त्वकाल एक समय है। तथा अजंघन्य स्थितिका जघन्य सत्त्वकाल एक समय और काल छह आवली है। संज्ञी जीवोंके पुरुषवेदियोंके समान जानना चाहिये। आहारक जीवोंके मोहनीयकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य सत्त्वकाल तीन समय कम क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट सत्त्वकाल अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। अनाहारक जीवोंके कार्मणकाययोगी जीवोंके समान जानना चाहिये। विशेषार्थ-कृष्णादि तीन लेश्याओंमें मोहनीयकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका काल सामान्य तिर्यंचोंके समान घटित कर लेना चाहिये। किन्तु इनके अजघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण जानना चाहिये, क्योंकि अपने अपने उत्कृष्ट काल तक अजघन्य स्थितिके निरन्तर रहने में कोई बाधा नहीं आती है। आहारकके दसवें गुणस्थानके अन्तिम समयमें मोहनीयकी जघन्य स्थिति होती है अतः इनके जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा। तथा जो तीन मोड़ेसे लब्ध्यपर्याप्तकोंमें उत्पन्न होता है उसके आहारककाल तीन समयकम खुद्दाभवग्रहणप्रमाण पाया जाता है, अतः आहारकके अजघन्य स्थितिका जघन्य काल तीन समय कम खुद्दाभवग्रहण प्रमाण कहा । अजघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है यह स्पष्ट ही है । शेष कथन सुगम है। ६८३. अन्तरानुगम दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उनमें से उत्कृष्ट अन्तरानुगमका १. प्रतौ ज० एगसमझो खुद्दा-ईति पाठः। ... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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