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प्रकाशककी ओर से आज सात वर्षके पश्चात् कसायपाहुड (जयधवला ) के तीसरे भाग (स्थिति विभक्ति) को प्रकाशित करते हुए हमें जहाँ हर्ष है वहाँ अपने पर खेद भी है। दूसरा भाग प्रकाशित करते समय ही उत्तम कागज दुष्प्राप्य था और प्रेस सम्बन्धी कठिनाइयाँ भी थीं। उसके पश्चात् आर्थिक कठिनाई भी उपस्थित होगई और प्रयत्न करनेपर भी छपाईका कार्य प्रारम्भ न हो सका।
इसी बीचमें संघके प्रधानमंत्री पं० राजेन्द्रकुमारजीने प्रधानमंत्रित्वके कार्य-भारसे मुक्ति ले ली और पं० जगमोहनलालजी शास्त्रीको प्रधानमंत्रित्वका भार सौंपा गया। आपके कार्यकालमें कुण्डलपुर (मध्यप्रदेश) में संघका वार्षिक अधिवेशन हुआ और उसका सभापतिपद डोंगरगढ़ (मध्यप्रदेश) के प्रसिद्ध उदारमना दानवीर सेठ भागचन्द्रजीने सुशोभित किया।
उस अवसर पर आपने कसायपाहुड ( जयधवला) के प्रकाशनको चालू रखनेके लिये ग्यारह हजार रुपयोंके दानकी उदार घोषणा की और यह भी आश्वासन दिया कि द्रव्यकी कमीके कारण यह सत्कार्य बन्द नहीं होगा। इससे सभीको हर्ष हुआ और कागज तथा प्रेसकी व्यवस्था होते ही तीसरा भाग प्रेसमें दे दिया गया जो एक वर्षके पश्चात् प्रकाशित हो रहा है। तथा चौथे भागके भी कुछ फार्म छप चुके हैं और पाँचवाँ भाग भी प्रेसमें दिया जानेवाला है। ___ यह सब दानवीर सेठ भागचन्द्रजीकी उदार दानशीलताका ही सुफल है । उन्होंने अपनी लक्ष्मीका विनियोग ऐसे सत्कार्यमें करके धनिकों और दानियों के सन्मुख एक आदर्श उपस्थित करनेके साथ साथ अक्षय पुण्यलाभ लिया है । क्योंकि शास्त्रकारोंने कहा है
ये यजन्ते श्रुतं भक्त्या ते यजन्तेऽञ्जसा जिनम् ।
न किञ्चिदन्तरं प्राहुराप्ता हि श्रुतदेवयोः ।। 'जो भक्तिपूर्वक श्रुतकी पूजा करते हैं वे यथार्थसे जिनेन्द्रदेवकी ही पूजा करते हैं, क्योंकि सर्वज्ञदेवने श्रुत और जिनदेवमें कुछ भी भेद नहीं बतलाया है।'
अतः कसायपाहुड जैसे ग्रन्थराजके प्रकाशनमें द्रव्यका विनियोग करके सेठ भागचन्द्रजीने प्रकारान्तरसे गजरथ महोत्सवको ही सम्पन्न किया है, क्योंकि जिनबिम्ब प्रतिष्ठासे जिनवाणी प्रतिष्ठा किसी भी अंशमें कम नहीं है।
हम सेठ भागचन्द्रजीको उनकी इस उदारताके लिये शतशः धन्यवाद देते हैं और आशा करते हैं कि अब यह सत्कार्य अवश्य ही निर्विघ्न पूर्ण होगा। ____ इस भागके अनुवादादि समस्त कार्य पं० फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्रीने निष्पन्न किये हैं। मूल व अनुवाद आदिका संशोधन व पाठ मिलान आदि कायम मैंने भी पंडितजीके साथ सहयोग किया है। पण्डितजी आगेके खण्डोंका भी सब कार्य बड़ी तत्परतासे कर रहे हैं। उक्त दानमें भी उनकी प्रेरणा विशेषतः रही है। इसलिये वे भी धन्यवाद के पात्र हैं। ___ इस भागमें स्थितिविभक्ति नामक अधिकार आया है, जो अपूर्ण है, वह चौथे भागमें पूर्ण होगा। इसलिये उसके सम्बन्धमें सम्पादकीय वक्तव्य वगैरह चौथे अधिकार में दिया जायेगा।
काशीमें गङ्गातट पर स्थित स्व० बाबू छेदीलालजीके जिनमन्दिरके नीचेके भागमें जयधवला कार्यालय अपने जन्मकालसे ही स्थित है। और यह स्व० बाबू सा० के सुपुत्र धर्मप्रेमी बाबू गणेशदासजी और पौत्र या, सालिगरामजी तथा ऋषभचन्दजीके सौजन्य और धर्मप्रेमका परिचायक है, अतः मैं उन सज्जनोंका भी आभारी हूँ ।
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