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________________ ५३६ गा ०२२ ] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिविदिविहत्तियअप्पाबहुवे मिच्छत्त-सम्मामि०-बारसक० ज० हि० वि० संखेगुणा । सत्तणोक-चदुसंज० ज० हि० वि० असंखे गुणा । णवंसयवेद० ज० हि० वि० असंखे० गुणा । एवं णस० । णवरि जम्हि इत्थिवेदो सम्मत्तेण सह वुत्तो तम्हि गर्बुसयवेदो वत्तव्यो । जम्हि गQसयवेदो तम्हि इत्थिवेदो वत्तव्यो । पुरिसवेदे सव्वत्थोवा सम्मत्त० ज० विहत्ती । मिच्छत्त-सम्मामि०-बारसक० जह० हिदि० विहत्ती संखे०गणा। पुरिसवेदजह० असंखे. गुणा । चदुसंजल० जह० संखे० गुणा। छण्णोक० जह• संखे गुणा । इत्थिवेदज. विहत्ती असंखे गुणा । णस० ज० वि० असंखे०गुणा । अवगदवेदे सव्वत्थोवा लोभसंजलणज० हि० विह० । मायासंज० ज० विहत्ती असंखेगुणा । माणसंज. ज० संखे०गुणा । कोधसंज० ज० वि० संखे गुणा । पुरिस० ज० वि० संखे गुणा । छण्णोक० ज० वि० संखे०गुणा । अढकसा०-इत्थि०-णवंस० ज० वि० असंखे०गुणा । मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि० ज० वि० संखे गुणा। ६०५. कसायाणुवादेण कोधकसाईसु सव्वत्थोवा सम्मत्त०-इत्थि०-णस० ज० हि० वि०। मिच्छ०-सम्मामि.'-बारसक० ज० हि० वि० संखे०गणा। चदुसंज. ज. हि० वि० असंखे० गुणा । परिस० ज० हि० वि० संखे०गणा । छण्णोक० ज० सबसे थोड़ी है। इससे मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और बारह कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है। इससे सात नोकषाय और चार सज्वलनोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी है। इससे नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी है। इसी प्रकार नपुंमकवेद् वाले जीवोंके जानना चाहिये। किन्तु जहां पर सम्यक्त्वके साथ स्त्रीवेद कहा है वहां नपुंसकवेद कहना चाहिये और जहां नपुंसकवेद कहा है वहां स्त्रीवेद कहना चाहिये। पुरुषवेदमें सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ी है। इससे मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और बारह कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । इससे पुरुषवेदको जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी है। इससे चार संज्वलनोंकी जघन्य स्थितिविभाक्त संख्यातगुणी है। इससे छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । इससे स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी है। इससे नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी है। अपगतवेदमें लोभसज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ी है। इससे माया संज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी है। इससे मानसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है। इससे क्राधसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है। इससे पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है। इससे छह नाकषायोंकी जघन्य स्थितिविभाक्त संख्यातगुणी है। इससे आठ कषाय, स्त्रीवद और नपुंसकवदकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणा है। इससे मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणा है। . ६६०५. कषाय मार्गणाके अनुवादसे क्रोध कषायवाले जीवोंमें सम्यक्त्व, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ा है। इससे मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और बारह कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणो है। इससे चार संज्वलनोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी है। इससे पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है। इससे छह १. आ० प्रतौ 'मिच्छ० सम्म० सम्मामि०' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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