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________________ ५३८ सहिदे कसा पाहुडे [ द्विदिविहती. ३ तत्तिया चेव । ज० द्वि०वि संखे० गुणा । बारसक० वणोक० जह० विहत्ती असंखे ० गुणा । मिच्छत्त- सम्मामि० ज० हिदि वि० संखे० गुणा । ९६०३. ओरालियमिस्स ०तिरिक्खोघभंगो | णवरि अनंताणु० चउक्क० बारसकसायभंगो । एवं वेउव्वियमिस्स० । णवरि णवुंसय वेदस्सुवरि बारसक० -भय- दुगुंछ ० जह० संखे० गुणा | मिच्छ० संखे० गुणा । अनंतापु० चउक्क० संखे० गुणा । वेउच्चि - यकाय० सोहम्मभंगो । णवरि सम्पत्तं सम्मामिच्छत्तेण सह वत्तव्यं । कम्मइय० सव्वत्थोवा सम्मत्त० ज० ट्ठिदिवि० । सम्मामि० ज० वि० संखे० गुणा । पुरिस० ज० हिदिवि० असंखे० गुणा । इत्थिज० वि० विसे ० । इस्स - रदि० ज० वि० विसे० । दि-सोग० ज० वि० विसे० । णवुस० ज० वि० विसे० । भय-दुर्गुछ० ज० वि विसे० | सोलसक० ज० वि० विसे० । मिच्छ० ज० वि० विसेसाहिया । एवमणाहारीणं । आहार० आहारमिस्स० सव्वत्थोवा बारसक० - णवणोक० ज० द्विदिवि० । मिच्छ० सम्म० सम्मामि० ज० द्विदिवि० संखेज्जगुणा । अनंतागु० चउक्क० ज० द्वि० वि० संखे० गुणा | $ ९०४. वेदावादेण इत्थवेदे सन्वत्थोवा सम्मत्त - इत्थि० जह० द्वि० विहत्ती । सबसे थोड़ी है । अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्ति उतनी ही है । पर यत्स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है। इससे बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी है । इससे मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । ९६०३. औदारिकमिश्रकाययोगियोंका भंग सामान्य तिर्यंचोंके समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग बारह कषायोंके समान है। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें नपुंसक वेदके ऊपर बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । इससे मिध्यात्व की जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है। इससे अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है। वैकिकाययोगियों का भंग सौधर्म कल्पके समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें सम्यक्त्वको सम्यग्मिथ्यात्व के साथ कहना चाहिये । कार्मणकाययोगियों में सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ी है। इससे सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । इससे पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी है । इससे स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। इससे हास्य और रतिकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है । इससे रति और शोकको जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है । इससे नपुंसकवेद्की जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। इससे भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। इससे सोलह कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। इसी प्रकार अनाहारकों के जानना चाहिये । आहारककाययोगी और आहारक मिश्र काययोगियों में बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ी है इससे मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है। . इससे अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । $६०४ वेद मार्गणा के अनुवादसे स्त्रीवेदमें सम्यक्त्व और स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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