SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 550
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गां• २२ ] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिविहत्तियअप्पाबहुवे ५३१ जोगि०-ओरालिय०-लोभक०-आभिणि-मुद०-ओहि०-संजद०-चक्खु०-अचक्खुओहिदंस-मुक्कले०-भवसि०-सम्मादि०-सण्णि-आहारए त्ति । णवरि मणुसपज्ज. छणोकसायाणमुवरि इत्थिवेद० जह० असंखेगुणा । मणुसिणी० कोधसंजलणस्सुवरि पुरिस०-छण्णोक० जह० हिदिवि० संखे०गुणा । णqस० जह० हिदिवि० असंखे०गुणा । ६८९१. ओदेसेण णेरइएसु सव्वत्थोवा सम्मत्त० जह० हिदिवि० । सम्मामि०अणंताणु०चउक्क० जह० हिदिवि० संखेगुणा । पुरिस० जह० हिदिवि० असंखे गुणा। इत्थिज. हि. विसेसा० । के. मेण ? पुरिसवेदबंधगद्धूणित्थिवेदबंधगद्धामेत्रेण । हस्स-रदि० जह• हि. वि. विसे । के० मेोण ? अरदि-सोगवंधगद्धृण पुरिसणवू सयवेदबंधगद्धागेचेण । अरदि-सोग० जहण्ण हिदिवि० विसे० । के० मेचेण ? हस्सरइबंधगद्धापरिहीणसगवंधगद्धामशेण । णवंस० जह० डिदिवि० विसे । के० मेण ? इत्थि-पुरिसबंधगद्धृणहस्स-रदिबंधगद्धामण। बारसक०-भय-दुगुंठाणं जह० हिदिवि० विसे० । मिच्छत्तज. हिदिवि० विसे० । ८६२. एत्थुवउज्जंतमद्धप्पाबहुअं वत्तइस्सामो । तं जहा-सव्वत्थोवा पुरिसबंधगदा २ । इत्थिवेदबंधयद्धा संखेगुणा ४ । हस्स-रदि-बंधगद्धा संखे० गुणा १६ । पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिक काययोगी, लोभ कषायवाले, मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, संयत, चक्षुदर्शनवाले, अचक्षुदर्शनवाले, अवधिदर्शनवाले, शुक्ललेश्यावाले, भव्य, सम्यग्दृष्टि, संज्ञी और आहारक जीवोंके जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि मनुष्य पर्याप्तकोंमें छह नोकषायोंके ऊपर स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी होती है। मनुष्यनियों में क्रोधसंज्वलनके ऊपर पुरुषवेद और छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी होती है । इससे नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी होती है। 8८६१. आदेशनिर्देशकी अपेक्षा नारकियोंमें सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ी है ? इससे सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यात. गुणी है। इससे पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है। इससे स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। कितनी अधिक है ? पुरुषवेदके बन्धककालसे कम स्त्रीवेदके बन्धक कालप्रमाण अधिक है। इससे हास्य और रतिकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। कितनी अधिक है ? अरति और शोकके बन्धक कालसे कम पुरुषवेद और नपुंसकवेदके बन्धक कालप्रमाण अधिक है । इससे अरति और शोककी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। कितनी अधिक है ? हास्य और रतिके बन्धक कालसे कम अपने बन्धक कालप्रमाण अधिक है। इससे नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। कितनी अधिक है ? स्त्रीवेद और पुरुषवेदके बन्धकालसे कम हास्य और रतिके बन्धकाल प्रमाण अधिक है। इससे बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। ६८९२. अब यहाँ प्रकृतमें उपयोगी अल्पबहुत्वको बतलाते हैं। जो इस प्रकार है पुरुषवेदका बन्धकाल सबसे थोड़ा है जिसकी सहनानी २ है। इससे स्त्रीवेदका बन्धकाल संख्यातगुणा है जिसकी सहनानी ४ है। इससे हास्य और रतिका बन्धकाल संख्यात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy