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________________ बयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ १८८८. अवगद० सव्वत्थोवा बारसक०-णवणोक० उक्क० द्विदिविहत्ती। मिच्छत्तसम्मत्त-सम्मामि० उक्क हिदिवि० विसे । एवं सुहुम-जहाक्खाद० अकसायित्ति । ८८६. खइए णत्थि अप्पाबहुगं; बारसक०-णवणोक हिदीणं सरिसत्तादो। उवसमे सव्वत्थोवा सोलसक०-णवणोक०-उक्क. हिदिविहत्ती। मिच्छत्त-सम्मत्तसम्मामि० उक्क० हिदिविहत्ती विसे । एवं सासण० । सम्मामि० सव्वत्थोवा सोलसक०णवणोक० उक्क ठिदिविहत्ती । सम्मत्त० उक्कहिदिविहत्ती विसे । सम्मामि० उक्क० हिदिवि० विसे० । मिच्छत्तउक्क० विसे० । एवमुक्कस्सप्पाबहुप्राणुगमो समत्तो। १८६०. जहण्णए पयदं । दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसे० । ओघेण सव्वत्थोवा सम्मत्त-इत्थि०-णवंस०-लोभसंज. जहण्णहिदिविहत्ती। मिच्छत्त-सम्मामि०-बारसक० जहण्णहिदिविहत्ती संखे०गुणा। मायासंज० जह० हिदिवि० असंखे गुणा । माणसंजल० जह० हिदिविह० संखेगुणा । कोधजह हिदिवि० संखे० गुणा। पुरिसजह० हिदि० विह० संखेज्जगुणा । छण्णोक० जह० हिदिवि० संखे गुणा । एवं मणुस०मणुसपज्ज०-मणुसिणी-पंचिंदिय-पंचिंपज्ज०-तस-तसपज्ज-पंचमण-पंचवचि०-कायसम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतियां नहीं हैं। ___८८८. अपगत वेदियोंमें बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ी है। इससे मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है । इसी प्रकार सूक्ष्मसांपरायिक संयत, यथाख्यातसंयत और अकषायी जीवोंमें जानना चाहिये । ८८६. क्षायिक सम्यग्दृष्टियोंमें अल्पबहुत्व नहीं है, क्योंकि इनके बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थितियां समान है। उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ी है। इससे मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है । इसी प्रकार सासादन सम्यग्दृष्टियोंके जानना चाहिये । सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंमें सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ी हैं। इससे सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थिति विभक्ति विशेष अधिक है। इससे सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट । स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। __ इस प्रकार उत्कृष्ट अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। ६८६०.अब जघन्य स्थिति अल्पबहत्वका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश। उनमेंसे ओघकी अपेक्षा सम्यक्त्व, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और लोभसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ी है। इससे मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और बारह कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है। इससे मायासंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी है। इससे मानसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । इससे क्रोधसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । इससे पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । इससे छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है। इसी प्रकार सामान्य मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त, मनुप्यनी, पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, प्रस, स, पर्याप्त, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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