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________________ गा० २२ ] द्विदिविहतीए उत्तरपयडिट्ठिदिविहत्तिय सरिणयासो ४८१ ९८०६. पडिहग्गपढमसमयम्मि णव सयवेद-हस्स- रदीणं बंधे संते तिन्हं पि उक्क सहिदिविहत्ती होदि । तदणंतरविदियसमए हस्स-रदिबंधे वोच्छिष्णे हस्स- रदीर्ण समयूरपुक्कसहिदी होदि । एवं दुसमयूणादिकमेण णेदव्वं जाव समऊणावलियाए ऊणुक्कसहिदिति । उवरि इत्थवेदे णिरुद्धे हस्स-रदीणं वत्तकमं बुद्धीए अवहारिय वत्तव्वं । * अरदि-सोगाणं हिदिविहत्ती किमुक्कस्सा अणक्कस्सा ? $ ८०७. सुगमं १ * उक्कस्सा वा अणुक्कस्सा वा । ९८०८. वसय वेदबंधकाले अरदि- सोगाणं बंधे संते तिन्हं पि उक्कस्सहिदिविहत्ती होदि, अण्णा अणुक्कस्सा; अवज्झमाणबंधपयडीणं पडिग्गहत्ताभावादो ? * उक्कस्सादो अणुक्कस्सा समऊणमादिं काढूण जाव वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण ऊणाओ । ६८०६ तं जहा - सोलसकसायाणमुक्कस्सडिदिमंतोमुहुत्तमेत्तकालं बंधिय पंडिहग्गसमए अरदि-सोगबंधवोच्छेददुवारेण हस्स रदीस बंधमागयासु णव सयवेद हिंदी तत्थं उक्कस्सा; बज्झमाणत्तादो । अरदि-सोगहिदी पुण समयूयुक्कस्सा; बंधाभावादो । ९८०६. प्रतिभग्न कालके प्रथम समय में नपुंसकवेद, हास्य और रतिके बन्ध होते हुए तीनों की ही उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है । तदनन्तर दूसरे समय में हास्य और रतिके बन्धके व्युच्छिन्न हो जाने पर हास्य और रतिकी उत्कृष्ट स्थिति एक समय कम होती है। इस प्रकार दो समय कम आदि क्रमसे लेकर एक समय कम आवलिसे न्यून उत्कृष्ट स्थिति तक जानना चाहिये । तथा इसके आगे स्त्रीवेदको उत्कृष्ट स्थितिके रहते हुए हास्य और रतिका जो क्रम कहा है उसका बुद्धिसे निश्चय करके यहाँ भी कथन करना चाहिये । नपुंसकवेदी उत्कृष्ट स्थिति के समय अरति और शोककी स्थितिविभक्ति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कुष्ट ? है । ६ ८०७. यह सूत्र सुगम * उत्कृष्ट होती है और अनुत्कृष्ट भी । § ८०८. नपुंसकवेदके बन्धके समय अरति और शोकके बन्ध होने पर तीनों की ही उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है, अन्यथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है; क्योंकि नहीं बँधनेवाली प्रकृतियों में पतग्रहपना नहीं पाया जाता है । * वह अनुत्कृष्ट स्थिति एक समय कम अपनी उत्कृष्ट स्थिति से लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भाग न्यून बीस कोड़ाकोड़ी सागर तक होती है । ९८०६. जो इस प्रकार है— सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिको अन्तर्मुहूर्त काल तक बाँधकर प्रतिभग्नकाल के प्रथम समय में अरति और शोककी बन्ध व्युच्छित्ति होकर हास्य और रतिबन्धको प्राप्त होने पर वहाँ पर नपुंसकवेदकी स्थिति उत्कृष्ट होती है, हो रहा है परन्तु अति और शोककी उत्कृष्ट स्थिति एक समय कम होती है, ६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only क्योंकि उसका बन्ध क्योंकि उनका बन्ध www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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