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________________ ४७६ गा० २२] हिदिविहत्तीएउत्तरपयडिहिदिविहत्तियसरिणयासो ४७६ कारणं ? तदभावे अचंताभावो ? * उक्कस्सादो अणुक्कस्सा अंतोमुहुत्त णमादि कादूण जाव अंतो. कोडाकोडि त्ति। ८०२. तं जहा–सोलसकसायाणमुक्कस्सहिदिं बंधिय पडिहग्गसमए समयाविरोहेण बज्झमाणिस्थि-पुरिसवेदेसु बंधावलियादिक्कतकसायहिदीए संकेताए इत्थिपुरिसवेदाणमुक्कस्सद्विदिविहत्ती होदि । तदो अंतोमुहुत्तण संकिलेसं गंतूण कसायुकस्सहिदि बंधिय बंधावलियादिक्कंतकसायद्विदिम्मि णवुसयवेदे संकामिदम्मि णव॒सयवेदस्स उक्कस्सहिदिविहत्ती। तत्थुद्देसे गं इत्थि-पुरिसवेदहिदी पुण णियमा अंतोमुहुत्तूणा; सगुक्कस्सहिदीदो अधहिदिगलणाए गलिदंतोमुहुत्तत्तादो। एवं समयूणादिकमेण कसायहिदि बंधिय ओदारेदूण णेदव्वं जाव अंतोकोडाकोडि त्ति । ८०३. इथिवेदणिरु'भणे कदे णव॒सयवेदुक्कस्सहिदी समयूणा जादा । णवुसयवेदम्मि णिरु भणे कदे पुण इत्थिवेदहिदी सगुक्कस्सादो अंतोमुहुत्तूणा जादा । किमेदस्स कारणं ? वुच्चदे-कसायाणमुक्कस्सहिदीए बज्झमाणाए णवुसयवेदस्स जेण तत्थ णियमेण बंधो तेण पडिहग्गसमए इत्थिवेदे उक्कस्सहिदिमुवगदे णवंसय शंका-इसका क्या कारण है ? समाधान-नपुंसकवेदके बन्धके समय स्त्रीवेद और पुरुषवेदका बन्ध नहीं होनेमें अत्यन्ताभाव कारण है। अर्थात् नपुंसकवेदके बन्धके समय स्त्रीवेद और पुरुषवेदके बन्धका सर्वथा अभाव है। * वह अनुत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त कम अपनी उत्कृष्ट स्थितिसे लेकर अन्त:कोडाकोड़ी सागर तक होती है । ८०२. जो इस प्रकार है-सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिको बाँधकर प्रतिभग्नकालके प्रथम समयमें आगमानुकूल बँधनेवाले स्त्रीवेद और पुरुषवेदमें बन्धावलिसे रहित कषायकी स्थितिके संक्रान्त होने पर स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है। तदनन्तर एक अन्तर्मुहूर्त कालके द्वारा संक्लेशको प्राप्त होकर और कषायकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके बन्धावलीसे रहित कषायकी स्थितिके नपुसकवेदमें संक्रान्त होने पर नपुसकवेदकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है। तब वहाँ पर स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थिति नियमसे अन्तर्मुहूर्त कम होती है, क्योंकि स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी अपनी उत्कृष्ट स्थितिमेंसे अधास्थितिगलनाके द्वारा एक अन्तमुहूर्त गल गया है। इस प्रकार एक समय कम आदिके क्रमसे कषायकी स्थितिका बन्ध कराके अन्तःकोड़ी सागर प्रमाण स्थितिके प्राप्त होनेतक स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी स्थितिको घटाते जाना चाहिये। ६८०३. शंका-स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थितिके रहते हुए नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट स्थिति एक समय कम होती है और नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट स्थितिके रहने पर स्त्रीवेदकी स्थिति अपनी उत्कृष्ट स्थितिसे अमुहूते कम होती है, इसका क्या कारण है ? . समाधान-कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बँधते समय नपुंसकवेदका चूँ कि नियमसे बन्ध होता है इसलिये प्रतिभग्न कालके प्रथम समयमें स्त्रीवेदके उत्कृष्ट स्थितिको प्राप्त होने पर नपुसक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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