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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ द्विदिहिती ३
यादीदा संकंताए तिन्हं अणुक्कस्सहिदिविहत्ती होदि । तदो उवरिमसमए हस्स - रदिबंधे फिट्ट अरदि-सोग्गित्थवेदाणमुक्कस्स द्विदिविहत्ती होदि । तत्काले हस्स - रदीणं पुन्नरुिद्धहिदी समयूणा होदि ।
* अरदि-सोगाणं द्विदिविहत्ती किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा ? १७७६ सुगममेदं ।
* उक्कस्सा वा अणुक्कस्सा वा ।
९ ७८०. इत्थवेदे बज्झमाणे जदि अरदि-सोगा बंज्झति तो इत्थिवेदुक्कस्सहिदी सह अरदि - सोगाणं पि उक्कस्सट्ठिदिविहत्ती होदि; बंधावलियादीदकसायु कस्सहिदी कमेण तिन्हमुवरि संकंतीए । अण्णा अणुक्कस्सा; पडिहग्गावलियाए अरदिसोगाणं बंधाभावेण ण पहिग्गभावाणं कसायुक्कसहिदीए श्रागमाभावादो ।
* उक्कस्सादो अणुक्कस्सा समयूणमादिं काढूण जाव वीससागरो - वमकोडाकोडीओ पलिदोवमस्स असंखेज्ज दिभागेणूणाओ त्ति ।
$ ७८१, एदासि पयडीणं समयूणुक्कस्सडिदियादिविदीर्ण सण्णासो बुच्चदे | तं जहा - श्रावलियमेत्तकालं कसायाणमुकस्सद्विदिं बंधिय पडिहग्गसमए बज्झमा - णित्थिवेद-अरदि-सोगेसु बंधावलियादिक्कत कसायद्विदीए संकंताए तिन्हं पि उक्कस्स
बाद संक्रान्त होने पर तीनोंकी अनुत्कृष्ट स्थिति विभक्ति होती है तदनन्तर इसके आगे के समयमें हास्य और रतिकी बन्धव्युच्छिन्ति हो जानेपर अरति, शोक और स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है । तथा उस समय हास्य और रतिकी पहले रुकी हुई स्थिति एक समय कम होती है !
* स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थिति के समय अरति और शोककी स्थितिविभक्ति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ?
$ ७७६. यह सूत्र सुगम है ।
* उत्कृष्ट होती है और अनुत्कष्ट होती है ।
$ ७८०. स्त्रीवेदके बन्धके समय यदि अरति और शोकका बन्ध होता है तो स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थिति के साथ अरति और शोककी भी उत्कृष्ट स्थिति विभक्ति होती है, क्योंकि बन्धावलि सेहत का उत्कृष्ट स्थितिका एक साथ तीनों में संक्रमण हुआ है । अन्यथा अरति और शोक की स्थिति अनुत्कृष्ट होती है, क्योंकि प्रतिभग्न कालकी एक आवलिके भीतर बन्ध नहीं होने से पतद्ग्रहपने से रहित अरति और शोक में कषायकी उत्कृष्ट स्थितिका संक्रमण नहीं होता ।
वह अनुत्कृष्ट स्थिति अपनी उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा एक समय कमसे लेकर पल्य का असंख्यातवाँ भाग कम बीस कोड़ाकोड़ी सागर तक होती है ।
९ ७८१. अब इन प्रकृतियोंकी एक समय कम उत्कृष्ट स्थिति से लेकर शेष स्थितियोंका सन्निकर्ष कहते हैं । जो इस प्रकार है- एक आवलिकाल तक कषायकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके प्रतिभग्न काल के प्रथम समय में बंधनेवाली स्त्रीवेद, अरति और शोक प्रकृतियों में बंधावलि से रहित कषायकी स्थिति के संक्रान्त होनेपर तीनोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है । तदनन्तर
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