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________________ गा० २२ ] द्विदिविहत्तीए उत्तरपयडिद्विदिविहत्तियसरिणयासो ४६३ हिदिपदेसाणमुक्कीरणमकुणमाणाए अद्धाए उक्कीरणद्धा त्ति ववएसो घडदे । णाणत्थिया एसा सण्णा, आगमसबसण्णाणमत्थाणुगयाणमवलंभादो । एदं सुत्त देसामासियं ति काऊण सव्वहिदिकंडयाणि अंतोमुहुत्तण णिवदंति त्ति घेत्तव्वं । ण समुग्घादगदकेवलिद्विदिकंडएहि वियहिचारो; केवलीणमकेवलीहि साहम्माभावादो। ____ ६७६७ चरिममुव्वेलणकंडयस्स चरिमफालीए जत्तिया णिसेया तत्तियमेतद्विदीयो मोत्त ण जत्तियाओ सेसहिदीओ तत्तियमेत्ता चेव सण्णियासवियप्पा होति । चरिमफालिमत्ता किण्ण लद्धा ? ण, तत्तियमेत्तहिदीसु एगवारेण णिवदिदासु मिच्छत्तु कस्सहिदीए सह पादेवकं तहिदीणं सण्णियासाणुवलंभादो। ण तदुवरिमादिमुव्वेल्लणकंडएहि वियहिचारो, तेसि कंडयाणमवहिदायामाभावेण सव्वणिसेगाणं मिक्छत्तु कस्सहिदीए सह सण्णियासुवलंभादो। ण चरिमुव्वेल्लणकंडयम्मि जहण्णम्मि आयाम पडि अणियमो; तिकालविसयासेसजीवेसु चरिमुव्वेल्लणजहण्णकंडयायामस्स एगसरूवत्तादो। एदं कुदो णव्वदे ? एदस्स मुत्तणिद्देसस्स अण्णहाणुववत्तीदो । उत्कीरण कालप्रमाण होती हैं। तथा स्थितिगत प्रदेशोंकी उत्कीरणा नहीं करने पर कालको स्कीरणकाल यह संज्ञा दी नहीं जा सकती। यदि कहा जाय कि यह संज्ञा निष्फल है, सो भी बात नहीं है, क्योंकि आगमिक सभी संज्ञाएं अर्थका अनुसरण करनेवाली होती हैं। - यह सूत्र देशामर्षक है ऐसा समझकर सब स्थितिकाण्डकोंका पतन अन्तर्मुहूर्त कालके द्वारा होता है ऐसा ग्रहण करना चाहिये। यदि कहा जाय कि ऐसा मानने पर समुद्घातगत केवलीके स्थितिकाण्डकोंके साथ व्यभिचार आता है सो भी बात नहीं है, क्योंकि केवलियोंकी इतर छद्यस्थोंके साथ समानता नहीं पाई जाती है। ६७६७ अन्तिम उद्वेलनाकाण्डककी अन्तिम फालिके जितने निषेक होते हैं उतनी स्थितियोंको छोड़कर शेष जितनी स्थितियां हों उतने ही सन्निकर्ष विकल्प होते हैं । शंका-अन्तिम फालिप्रमाण सन्निकर्षविकल्प क्यों नहीं प्राप्त होते हैं। समाधान-नहीं, क्योंकि उतनी स्थितियोंका एक बार में पतन हो जाता है, इसलिये मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके साथ उनमें से प्रत्येक स्थितिका सन्निकर्ष नहीं पाया है। यदि कहा जाय कि इसप्रकार तो इसके ऊपरके उद्वेलनकाण्डकसे लेकर प्रथम उदलनकाण्डक तक सभी उद्वेलनकाण्डकोंके साथ व्यभिचार हो जायगा, सो भी बात नहीं है, क्योंकि उन काण्डकोंका अवस्थित आयाम नहीं पाया जाता, इसलिये उनके सब निषेकोंका मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके साथ सन्निकर्ष बन जाता है। यदि कहा जाय कि जघन्य अन्तिम उद्वेलनाकाण्डकमें आयामका कोई नियम नहीं है, सो भी बात नहीं है, क्योंकि त्रिकालवर्ती सब जीवोंमें जघन्य अन्तिम उद्वेलनाकाण्डकका आयाम एकसा ही होता है । शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है १ समाधान-इस सूत्रका निर्देश अन्यथा बन नहीं सकता था, इससे जाना जाता है कि जघन्य अन्तिम उद्वेलना काण्डकका आयाम एकसा होता है। विशेषार्थ—यहाँ प्रकरण यह है कि मिथ्यात्व आदिकी उत्कृष्ट स्थितिवाले जीवके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? इसका जो उत्तर दिया है उसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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