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________________ wwwwwww wamirrirmwarrrrrrrrrrrrrrrrr गा० २२] हिदिविहत्तीए कालो २६ $ ५१. बादरेइंदियअपज्ज०-सुहुमेइंदियअपज्ज-विगलिंदियअपज्ज०-पंचिंदियअपज्ज -पंचकाय०बादरअपज्ज-तेसिं सुहमअपज्ज०-तसअपज्ज. पंचिंदियतिरिक्ख अपज्जत्तभंगो। $ ५२. सुहमेइंदिय० उक्क० केव० ? जहण्णुक्कस्सेण एयसमो । अणुक्क० जह० खुद्दाभवग्गणं समजणं, उक्क० असंखेजा लोगा। एवं पंचकायसुहमाणं पज्जत्ताणं । $ ५३. सुहमइंदियपज्ज० केव० ? जहण्णुक्कस्सेणेगसमओ। अणुक्क० जह० अंतोमुहत्तं समयूणं, उक्क० अंतीमुहुत्तं । एवं पंचकायसुहम० । अनुकृत्ष्ट स्थितिका सत्त्वकाल कितना है ? जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष है। विशेषार्थ-एकेन्द्रियोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थिति भवके पहले समयमें ही प्राप्त होती है अतः इनके मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय कहा। साथ ही यह उत्कृष्ट स्थिति लब्ध्यपर्याप्तक एकेन्द्रिय और सक्ष्म जीवोंके नहीं प्राप्त होती. अतः अनकट स्थितिका जघन्यकाल पूरा खुद्दाभवग्रहण प्रमाण कहा। एकेन्द्रियोंकी कायस्थिति असंख्यात पदगल परिवर्तन प्रमाण होनेसे इनके अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्टकाल उक्त प्रमाण कहा । बादर एकेन्द्रिय और बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंकी कायस्थिति क्रमशः अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण अर्थात् असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्गिणी काल प्रमाण व संख्यात हजार वर्ष काल प्रमाण होनेसे इनके केवल अनुत्कृष्ट स्थितिके उत्कृष्ट कालमें एकेन्द्रियोंसे अन्तर है। बाकी सब एकेन्द्रियोंके समान है । सो इसका उल्लेख पहले किया ही है। ५१. बादर एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक, सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक, विकलेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक, पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक, पांचों स्थावर काय बादर लब्ध्यपर्याप्तक, पांचों स्थावर काय सूक्ष्म लब्ध्यपर्याप्तक और त्रस लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंके पंचेन्द्रिय तिर्यश्च लब्ध्यपर्याप्तकों के समान जानना चाहिये । तात्पर्य यह है कि सभी लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समान होता है, अतः उक्त सब लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका काल पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च लब्ध्यपर्याप्तकोंके समान जानना चाहिये । ५२. सूक्ष्म एकेन्द्रियों के मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका सत्त्वकाल कितना है ? जघन्य और उत्कृष्ट दोनों एक समय है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य सत्त्वकाल एक समय कम खुद्दाभवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट सत्त्वकाल असंख्यात लोक प्रमाण है । इसी प्रकार पांचों सूक्ष्म स्थावरकायिक जीवोंके कहना चाहिये । ५३. सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंके मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका सत्त्वकाल कितना है ? जघन्य और उत्कृष्ट दोनों एक समय है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य सत्त्वकाल एक समय कम अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट सत्त्वकाल अन्तमुहूर्त है । इसी प्रकार पांचों सूक्ष्म स्थावरकायिक पर्याप्तकोंके जानना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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