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________________ ४५२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ बंधाविय ओदारेदव्वं जाव आवाधाकंडएणूणं ति । ७४३. संपहि आबाहाकंडएणूणित्थिवेदहिदीए इच्छिज्जमाणाए सोलसकसायाणमंतोमुहुत्तेणूणेण आबाहाकंडएणूणुक्कस्सहिदि बंधिय पडिहज्जिदूणित्थिवेदे बज्झमाणे बंधावलियादीदकसायहिदिमित्थिवेदसरूवेण संकामिय अवहिदमंतोमहुत्तद्धमच्छिय उक्कस्ससंकिलेसं पूरेदूण मिच्छत्तु क्कस्सहिदीए पबद्धाए तक्काले इत्थिवेदमप्पणो ओघुक्कस्सहिदि पेक्खिदूण एगाबाहाकंडएणूणं होदि। संपहि एदस्साबाहाकंडयस्स हेडा नं हिदिमिच्छदि तिस्से हिदीए उवरि सोलसकसायद्विदिमंतोमुहुत्तब्भहियं बंधाविय पुव्विल्लविहाणं जाणिदण ओदारेदव्वं जाव इत्थिवेदपाओग्गसव्वजहण्णमंतोकोडाकोडि त्ति । एवं पुरिसवेद-हस्स-रदीणं पि परूवेदव्वं, विसेसाभावादो।। * एवंसयवेद-अरदि-सोग-भय-दुगुछाणं हिदिविहत्ती किमुक्कस्सा किमणुक्कस्सा ? $ ७४४. सुगममेदं। * उक्कस्सा वा अणुक्कस्सा वा। ७४५. मिच्छत्तु क्कस्सहिदीए बज्झमाणाए जदि सोलसकसायाणमुक्कस्सहिदिबंधो पत्थि तो णवुसयवेद-अरदि-सोग-भय-दुगुंछाणं पि णत्थि उक्कस्सहिदिसंतकम्म, कसाएहिंतो एदासिं पयडीणमक्कस्सहिदिसंतुप्पत्तीदो । मिच्छत्त-सोलसकसायाणकालके बाद उत्कृष्ट संक्लेशके द्वारा मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध कराके एक अबाधाकाण्डकसे न्यून स्थितिके प्राप्त होने तक घटाते जाना चाहिये। ६७४३ अब आबाधाकाण्डकसे कम स्त्रीवेदकी स्थितिके इच्छित होनेपर सोलह कषायोंकी अन्तर्मुहूर्त कम आबाधाकाण्डकसे न्यून उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके और प्रतिभग्न होकर स्त्रीवेदका बन्ध करते समय बम्धावलिसे रहित कषायकी स्थितिका स्त्रीवेदरूपसे संक्रमण करके तदनन्तर अवस्थित अन्तर्मुहूर्त काल तक ठहर कर और उत्कृष्ट संलशकी पूर्ति करके जो जीव मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करता है उसके उस समय स्त्रीवेदकी स्थिति अपनी ओघ उत्कृष्ट स्थितिको देखते हुए एक आबाधाकाण्डक कम होती है। अब इस आबाधाकाण्डकके नीचे स्त्रीवेदकी जो स्थिति इच्छित हो उस स्थितिसे सोलह कषायोंकी स्थितिका अन्तर्मुहूर्त अधिक बन्ध कराके पूर्वोक्त विधिको जानकर उसके योग्य स्त्रीवेदकी सबसे जघन्य अन्तःकोड़ाकोड़ी स्थितिके प्राप्त होने तक स्थिति घटाता जावे। इसी प्रकार पुरुषवेद, हास्य और रतिका भी कथन करना चाहिये, क्योंकि उससे इनमें कोई विशेषता नहीं है। 8 मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके समय नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी स्थितिविभक्ति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? ६७४४. यह सूत्र सुगम है। * उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी। $ ७४५ मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धके समय यदि सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध नहीं होता है तो नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साका भी उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म नहीं होता है, क्योंकि कषायोंसे इन प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थिति उत्पन्न होती है। मिथ्यात्व और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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