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- जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[द्विदिविहत्ती ३ सव्वकम्माणमक्कमेणुकस्सहिदिबंधो ण होदि ? ण, सगसगविसेसपच्चएहि विणा उकस्ससंकिलेसमेण चेव सव्वपयडीणमुक्कस्सद्विदिबंधाभावादो। सव्वकम्माणं जे विसेसपच्चया तेसिमक्कमेण संभवो किण्ण होदि ? को एवं भणदि ण होदि त्ति, किं तु कयाइ होदि, सव्वकम्माणमक्कमेण कम्हि वि काले उक्कस्सहिदिबंधुवलंभादो । कयाइ ण होदि, कम्हि वि काले तदणुवलंभादो (के विसेसपच्चया ? जिणपडिमालयसंघाइरियपवयणपडिऊलदादरओ असंखेज्जलोगमेत्ता ।
७३९. अणुक्कस्सवियप्पपदुप्पायणहमुत्तरसु भणदि ।
* उकस्सादो अणुक्कस्सा समयूणमादि कादूण पलिदोषमस्स असंखे जदिभागेपूणा त्ति ।
६७४०. तं जहा–मिच्छत्तु क्कस्सहिदि बंधतो सोलसकसायाणं समयूणुक्कस्सहिदि बंधदि । एवं नूण समयणाबाहाकंडएणूणुक्कस्सहिदि पि बंधदि । किमाबाहाकंडयं णाम ? उकस्साबाहं विरलेऊण उक्कस्सहिदि समखंडं करिय विरलणरूवं स्थिति होती है।
शंका-उत्कृष्ट संक्लेशके रहते हुए एक साथ सब कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध क्यों नहीं होता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि अपने अपने स्थितिबन्धके विशेष कारणोंको छोड़कर केवल उत्कृष्ट संक्लेशमात्रसे सभी प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध नहीं होता है।
शंका-सब कर्मों के जो विशेष प्रत्यय हैं उनका एक साथ पाया जाना क्यों संभव नहीं है ?
समाधान-ऐसा कौन कहता है कि उनका एक साथ पाया जाना संभव नहीं है। किन्तु यदि सब प्रत्यय एक साथ होते हैं तो कदाचित् होते हैं, क्योंकि सब कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध किसी कालमें पाया भी जाता है । और कदाचित् सब प्रत्यय नहीं भी होते हैं, क्योंकि सब कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध किसी कालमें नहीं भी पाया जाता है ।
शंका-वे विशेष प्रत्यय कौन हैं ?
समाधान-जिन प्रतिमा, जिनायल, संघ, प्राचार्य और प्रवचनके प्रतिकूल चलना आदि असंख्यात लोकप्रमाण विशेष प्रत्यय हैं।
६ ७३६. अब अनुत्कृष्ट विकल्पोंका कथन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
* अनुत्कृष्ट स्थिति अपनी उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा एक समय कमसे लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भाग कम उत्कृष्ट स्थिति तक होती है।।
६७४०. उसका खुलासा इस प्रकार है-मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको बाँधनेवाला जीव सोलह कषायोंकी एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिको बाँधता है। इस प्रकार आगे जाकर वह जीव एक समय कम आबाधाकाण्डकसे न्यून उत्कृष्ट स्थितिको भी बाँधता है।
शंका-आबाधाकाण्डक किसे कहते हैं ?
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