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________________ गा० २२ ] द्विदिवही उत्तरपयडिद्विदिविहचियसविण्यासो va stroat, r विदियादिपरूवणाओ त्ति ? ण एस दोसी, सण्णियासवियप्पाणमुत्पत्तिवियप्पपरूवणडौं तप्परूवणादो । एवं सम्मामिच्छत्तस्स वि वतव्वं, विसेसाभावादो । * सोलसकसायाणं किमुक्कस्सा अणुकस्सा ? ९ ७३७. सुगममेदं ? * उकस्सा वा अणुक्कस्सा वा । ९ ७३८. जदि मिच्छत्तु कस्सहिदीए बज्झमाणाए सोलसकसायाणमुक्कस्सहिदिबंधो होज्ज तो उकस्सा । यह ण होज्ज तो अणुक्कस्सा | उक्कस्ससंकिलेसे संते किमहं a. food fareपको ही आगेकी प्ररूपणाओं में उत्पन्न करके बताया गया है, अतः पहली प्ररूपणा ही करनी चाहिये, द्वितीयादि प्ररूपणाएँ नहीं ? समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि सन्निकर्षविकल्प कितने प्रकार से उत्पन्न किये जा सकते हैं इसका कथन करनेके लिये उन द्वितीयादि प्ररूपणाओंका कथन किया है । इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा भी सन्निकर्ष विकल्प कहना चाहिये क्योंकि सम्यक्त्वकी प्ररूपणा से सम्यग्मिथ्यात्वकी प्ररूपणा में कोई विशेषता नहीं है । विशेषार्थ —— पन्द्रहवीं प्ररूपणा चार संयोगी है जो दो प्रकार से बतलाई है। पहला प्रकार तो स्पष्ट है किन्तु दूसरे प्रकार में कुछ विशेषता है जिसका यहाँ खुलासा किया जाता है । एक समय कम ध्रुवस्थिति से न्यून मिध्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके जितने समय हों उनकी एक एक करके पंक्तिरूप से स्थापना करे । अनन्तर अपने-अपने उत्कृष्ट कालोंमें से जघन्य कालोंके घटाने पर जो प्रतिभग्नकाल, सम्यक्त्वकाल और मिथ्यात्वकाल के समयोंका प्रमाण आवे उनकी भी पृथक्-पृथक् तीन पंक्तियाँ करे । तदनन्तर अन्तिम पंक्तिके समयोंकी गिनती कर ले। तदनन्तर तृतीय पंक्तिके समयोंकी गिनती करे । तदनन्तर दूसरी पंक्तिके समयोंकी गिनती करे । इस प्रकार गिनती करने से इन तीनों पंक्तियोंके समयोंकी जितनी संख्या हो उतना प्रथम पंक्तिके समयोंमेंसे घटा दे । तद्'नन्तर दूसरी और तीसरी आदि बार भी यही क्रम चालू रखे। इस प्रकार इस क्रमके करने से ध्रुवस्थिति पर्यन्त कितने सन्निकर्ष विकल्प होते है उनका प्रमाण आ जाता है। तथा इसके आगे शेष विकल्प नाना जीवोंकी उद्वेलनाकी अपेक्षा प्राप्त होते हैं । इस प्रकार इस प्ररूपणा के द्वारा कुल सन्निकर्ष विकल्प प्राप्त हो जाते हैं। सोलहवीं प्ररूपण । में सम्यक्त्वकी दो समय कालप्रमाण जघन्य स्थिति से लेकर उत्कृष्ट स्थितिपर्यन्त प्रतिलोम क्रमसे सन्निकर्ष विकल्प उत्पन्न करके बतलाये गये हैं । इस प्रकार यद्यपि पूर्व में सोलह प्ररूणाएं बतलाई हैं पर उनसे सन्निकर्ष विकल्पों में न्यूनाधिकता नहीं आती। ये प्ररूपणाएँ तो केवल सन्निकर्षविकल्प कितने प्रकार से उत्पन्न किये सकते हैं इसमें चरितार्थ हैं । इनके कथन करनेका अन्य कोई प्रयोजन नहीं हैं । इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थितिकी अपेक्षासे भी सन्निकर्ष विकल्प जानने चाहिये । ? * मिध्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके समय सोलह कषायोंकी क्या उत्कृष्ट स्थिति होती है या अनुत्कृष्ट स्थिति होती है ? ६ ७३७. यह सूत्र सुगम है 1 * उत्कृष्ट स्थिति भी होती है और अनुत्कृष्ट स्थिति भी होती है। 1 ४४७ ६७३८. यदि मिध्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध होते समय सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध होता है तो उत्कृष्ट स्थिति होती है । और यदि नहीं होता है तो अनुत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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