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________________ ४३४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिविहत्ती ३ | मिथ्यात्वकी बन्ध- |प्र० भ०] संक्रमणसे प्राप्त | वे० स० [सं० पू० मि० की उ०स्थि०० के स्थिति काल | | सम्यक्त्वकी स्थिति | काल काल स० सम्यक्त्वकी स्थि ६ १००० ६६६ ६८ ६६७ १८४ १८३ ६५१ ह८२ १८१ ६५० ६४६ ६४८ ६८० ६७६ ६७८ ६४७ ६४६ ६६४ ३०२ २८६ २५४ २८५ २८४ २५३ २५२ ३०० स० की ध्रु वस्थिति इतने सन्निकर्ष विकल्प संक्रमणसे प्राप्त हुए हैं। ये कुल सन्निकर्ष विकल्प ७०१ हुए। अब आगे अंकसंदृष्टिसे उद्वेलनाकी अपेक्षा सन्निकर्ष विकल्पोंके खुलासा करनेका प्रयत्न किया जाता है नाना जीव ८. स्थितिकाण्डक १६, उत्कीरणकाल ४ १ समय | उत्तरोत्तर एक | उत्कीरणाकाल | सम्यक्त्वकी सम्यक्त्वकी सम्यक्त्वकी एक समय कम और उद्वेलना | उद्वेलनासे सत्त्वस्थिति उ० का० उ० काण्डक काण्डकका योग प्राप्त स्थिति नाना जीव ध्रु वस्थिति ઉપર २७१ २५१ २५० २४६ ~r rdsur 9॥ २५२ ૨૫૨ ૨૨ ૨૨ २५२ ૨૫૨ ૨૫૨ mmmmmmmmm २६६ २६८ २६७ २६६ २० २४८ २४७ २४६ २४५ २६५ ८ वाँ २० यहाँ जो उत्कीरणाकालमें एक समय कम करके और उद्वेलनाकाण्डकमें उत्तरोत्तर एक एक समय कम करके अनन्तर इनके योगको सम्यक्त्वकी ध्र वस्थिति में जोड़ा है सो नाना जीवोंकी अपेक्षा सम्यक्त्वकी सत्त्वस्थिति उत्तरोत्तर एक-एक समय कम बतलानेके लिये किया गया है। यहाँ उत्कीरणाकालप्रमाण स्थिति तो अधःस्थिति गलनासे गल जाती है और उद्वेलना काण्डकप्रमाण स्थितिका उद्वेलनाकाण्डककी अन्तिम फालिके पतनके समय घात हो जाता है। यही कारण है कि सम्यक्त्वकी सत्त्वस्थिति मेंसे सर्वत्र उत्कीरणाकाल और उद्वेलनाकाण्डक प्रमाण स्थितियाँ घटाकर बतलाई गई हैं। इसी प्रकार आगे भी उद्वेलनाकी अपेक्षा सन्निकर्ष विकल्प ले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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