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________________ • जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिविहत्ती ३ अप्पप्पणो चरिमसमए वट्टमाणो तस्स जह० हिदिसंतकम्मं । अकसा० मोह० जह० क० ? अण्ण० खइयसम्मा० चरिमसमयअकसायस्स जहण्णयं हिदिसंतकम्मं । विहंग. मोह० जह. क. ? अण्ण० जो उवरिमगेवज्जदेवो चउबीससंतकम्मित्रो अवसाणे मिच्छत्तं गंतूण चरिमसमयविहंगणाणी जादो तस्स० जह० हिदिसंतकम्मं । ४१. सामाइय-छेदो० जह० कस्स ? अण्ण. अणियट्टिखवो चरिमसमयसापाइय-छेदोवडावण. संजमो तस्स जह• हिदिसंतकम्मं । परिहार० मोह० जह० क० १ अण्ण. खइयसम्मा० जो दो वारे उवसमसेढिं चढिय पच्छा खविददसणमोहणीओ देवेसु तेत्तीससागरोवममेत्ताउहिदिमणुपालिय मणुस्सेसुववज्जिय समयाविरोहेण पडिवण्णपरिहारसुद्धिसंजमो तस्स चरिमसमयपरिहारसुद्धिसंजदस्स जह० हिदिसंतकम्मं । संजदासंजद० मोह • जह• कस्स ? अण्णद. जो खइयसम्मा० परिहारस्स भणिदविहाणेणागंतूण चरिमसमयसंजदासंजदो जादो तस्स जह० हिदिसंतकम्मं । ४२. तेउ०-पम्म० परिहार भंगो। णवरि चरिमसमयतेउपम्मलेस्सालावो कायव्वो। होता है ? जो अनिवृत्तिक्षपक क्रोध, मान और मायाकषायके अन्तिम समयमें विद्यमान है उसके मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व होता है। अकषायी जीवों में मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व किसके होता है ? जो क्षायिकसम्यग्दृष्टि अकषायी जीव है उसके अन्तिम समयमें मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व होता है। विभंगज्ञानी जीवोंमें मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व किसके होता है ? चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जो उपरिम अवेयकका देव आयुके अन्तमें मिथ्यात्वको प्राप्त होकर विभंगज्ञानी हो गया है उसके अन्तिम समयमें मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व होता है। ४१. सामायिक और छेदोपस्थापना संयत जीवोंमें मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व किसके होता है ? जो अन्तिम समयवर्ती अनिवृत्ति क्षपक है उस सामायिकसंयत और छेदोपस्थापना संयत जीवके मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व होता है। परिहारविशुद्धि संयत जीवोंमें मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व किसके होता है ? दो बार उपशमश्रेणीपर चढ़कर अनन्तर जिसने दर्शनमोहनीयका क्षय किया है ऐसा जो क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव देवोंमें उत्पन्न हो कर और वहां तेतीस सागर प्रमाण आयुको समाप्त करके अनन्तर मनुष्योंमें उत्पन्न होकर जिस प्रकार आगममें बताया है उसके अनुसार परिहारविशुद्धि संयमको प्राप्त हुआ है उस परिहारविशुद्धि संयतके अन्तिम समयमें मोहनीयकी जघन्य स्थितिसत्त्व होता है। संयतासंयत जीवोंमें मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व किसके होता है ? जो क्षायिकसम्यग्दृष्टि परिहारविशुद्धि संयत जीव आगममें जिस प्रकार विधि बताई है उसके अनुसार परिहारविशुद्धि संयमको त्यागकर संयतासंयत हो गया है उस संयतासंयतके अन्तिम समयमें मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व होता है । ४२. पीतलेश्या और पद्मलेश्यावाले जीवोंके मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व परिहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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