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________________ गा० २२ ] द्विदिविहत्तीए उत्तरपयडिद्विदिविहत्तियपोरां ३८३ लोग० असंखे० भागो अह णव चोद्द० । सम्मामि० जह० अज० लोग० असंखे०भागो अट्ठ- णव चोद्द० । अणतारणु० चउक्क० जह० लोग असंखे० भागो श्रह चो६० । ज० लोग • असंखे ० भागो अह णव चोद० । एवं सोहम्मीसाण० । ० T $ ६४० भवण ० - वाणवेंतर० - जोदिसि० मिच्छ० - बारसक० णवणोक० जह० लोग. असंखे ० भागो । सव्वेसिमज० सम्म० सम्मामि० ज० ज० लोगस्स असंखे ०भागो अह अह - णव चो६० । अनंताणु ० ४ जह० अधुह अट्ठ चोह ० | सक्कुमारादि जाव सहस्सार ति मिच्छ० सम्म० -वारसक० - ० -णवणोक० ० जह० लोग० संखे ० भागो | सव्वेसिमज० सम्मामि० - प्रणतारणु० जह० ज० लोग० असंखे० भागो चोस० । आणदादि अच्चुदा त्ति मिच्छ० सम्म० - बारसक० णवणोक० जह० लोग० असंखे०भागो । सव्वेसिमजह० सम्मामि० - अनंताणु ०४ जह० अज० लोग ० असंखे० भागो छ चोह ० । उवरि खेत्तभंगो । एवं वेउव्वियमिस्स ० - आहार - आहारमि०बिभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है। तथा अजवन्य स्थितिवभक्तिवाले जीवोंने लोकके श्रसंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों मेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । तथा अन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान कल्पके देवोंमें जानना चाहिये । I ६४०, भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें मिथ्यात्व बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा सभी प्रकृतियों की अजघन्य तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग, त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम साढ़े तीन, कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम साढ़े तीन और कुछ कम आठ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । सानत्कुमारसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवों में मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, बारह कषाय और नौ नोकषायों की जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा सभी प्रकृतियोंकी अजघन्य और सम्यग्मिध्यात्व तथा अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके संख्यातवें भाग और सनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । आसे लेकर अच्युत कल्पतकके देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, बारह कषाय और नौ नोकषायों की जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । तथा उक्त सब प्रकृतियोंकी अजघन्य और सम्यग्मिथ्यात्व तथा अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसके आगे देवोंमें क्षेत्रके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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