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________________ www.rrinaarauraramanarwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwmawaanwwwwwwwwwww गा०२२) हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिविहत्तियपोसणं ३७१ ६२५. पंचिंदियतिरिक्ख०-पंचिं०तिरि०पज्ज-पंचिं०तिरि जोणिणी० मिच्छत्तसोलसक०-पंचणोक०-उक्क० लोग० असंखे०भागो छ चोद्दस० देसूणा । अणुक्क० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा। चत्तारिणोक० उक्क० लोग० असंखे भागो। अथवा णवणोक० उक्क० वारस चोइस० देसूणा । अणुक्क० लोग० असंखे० भागो [सव्वलोगो वा । सम्मत्त-सम्मामि० ] तिरिक्खोघं । स्थितिको प्राप्त होते हैं अतः तिर्यंचोंमें इनकी उत्कृष्ट स्थितिवालोंका वर्तमानकालीन स्पर्श उक्त प्रमाण बतलाया है । तथा इन कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिवाले तिथंच सातवें नरक तक मारणान्तिक समुद्धात करते हैं अतएव इनका अतीतकालीन स्पर्श कुछकम छह बटे चौदह राजुप्रमाण बतलाया है। तथा उक्त कर्मोकी अनुत्कृष्ट स्थितिवाले तिर्यंच सब लोकमें पाये जाते हैं यह स्पष्ट ही है, क्योंकि उक्त कर्मोंकी अनुत्कृष्ट स्थिति एकेन्द्रियादि सब तियचोंके सम्भव है, अतएव उक्त कर्मोंकी अनत्कृष्ट स्थितिवाले तिर्यंचोंका स्पर्श सब लोक बतलाया है। हास्य, रति, स्त्रीवेद और पुरुषवेद इन चार नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिवालोंका स्पर्श जो लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण बतलाया है उसका खुलासा, जिस प्रकार मिथ्यात्व आदिके वर्तमान कालीन स्पर्शका कर आये हैं, उसी प्रकार कर लेना चाहिये। किन्तु उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके जो देव एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं उन तिथंचोंके भी नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति पाई जाती है और नारकियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करनेवाले तियचोंके भी नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति पाई जाती है। अब यदि इनके स्पर्शका विचार किया जाता है तो वह कुछ कम तेरह बटे चौदह भाग प्रमाण प्राप्त होता है। यही कारण है कि मूलमें अथवा कह कर नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिवालोंका स्पर्श कुछ कम तेरह बटे चौदह भाग प्रमाण बतलाया है । तथा चार नोकषायोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिवाले तिर्यंचोंका स्पर्श सब लोक स्पष्ट ही है । कारणका उल्लेख पहले कर ही आये हैं । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति उन तियचोंके सम्भव है जो उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके अतिशीघ्र वेदक सम्यक्त्वको प्राप्त होते हैं पर ऐसे तिथंचोंका स्पर्श लोकका असंख्यातवां भाग प्रमाण ही है, अतः यहां उक्त प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिवालोंका स्पर्श लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण बतलाया है। तथा उक्त प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिवाले तिर्यंचोंका वर्तमान स्पर्श तो लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण ही है, क्योंकि इन प्रकृतियोंकी सत्तावालोंका वर्तमान स्पर्श लोकके असंख्यातवें भागसे अधिक नहीं प्राप्त होता । परन्तु इनकी सब लोकमें गति और आगति सम्भव है, इसलिये इनका अतीत कालीन स्पर्श सब लोक बतलाया है। ६६२५. पंचेन्द्रिय तियेंच, पंचेन्द्रिय तिथंच पर्याप्त और पंचेन्द्रिय तियेच योनिमतियोंमें मिथ्यात्व, सोजह कषाय और पांच नाकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवालोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भाग प्रेमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। चार नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । अथवा नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने बसनालोके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम बारह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और सब लोकका स्पर्श किया है। सम्यक्त्व व सम्यग्मिध्यात्वका स्पर्श सामान्य तियचोंके समान जानना चाहिये। विशेषार्थ-उक्त तीन प्रकारके तिर्यंचोंमें मिथ्यात्व आदिकी उत्कृष्ट स्थितिवालोंका स्पर्श जो कुछ कम छह बटे चौदह भाग बतलाया है उसका खुलासा सामान्य तियचोंके समान कर लेना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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