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________________ गी. २२) हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिद्विदिविहत्तियपरिमाणं ३६३ जह० असंखेज्जा। सम्म० जह० जम्मि खवणा पत्थि तम्मि असंखेजा। सम्मामि० सम्माइद्विपदेसु संखेजा। मदि-सुदअण्णा० सम्मत्त-अणंताणु०चउक्क० एइंदियभंगो । सेस० तिरिक्खोघं । एवं मिच्छादिहि-असण्णि त्ति । असंजद० तिरिक्खोघं । णवरि मिच्छत्त० ओघं । . ६६१५. अभव० छब्बीसपयडि० तिरिक्खोघं । णवरि अणंताणु० एइंदियभंगो। खइय० एकवीसपयडीणं ज० के० ? संखेजा। अज० के० १ असंखेजा। उवसम० चउवीसपयडी० ज० के १ संखेजा। अज० के० ? असंखेज्जा । अणंताणु०चउक्क. ज० अज० के० १ असंखेज्जा । एवं सम्मामिच्छादिहीणं । णवरि अणंताण. जह० संखेज्जा । सम्म-सम्मामि० जह० अज० असंखेजा। सासण. अहावीस० ज० के० ? संखेजा। अज० के० १ असंखेज्जा । सण्णि. पंचिंदियभंगो । अणाहारि० कम्मइयभंगो। एवं परिमाणाणुगमो समत्तो । ज्ञानियोंको छोड़कर शेवमें अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव असंख्यात हैं। तथा जिस मार्गणास्थानमें दर्शनमोहनीयकी क्षपणा नहीं है उस मार्गणास्थानमें सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव असंख्यात हैं और सम्यग्दृष्टि मार्गणाओंमें सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिवाले जीव संख्यात हैं। मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें सम्यक्त्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भंग एकेन्द्रियोंके समान है । शेष प्रकृतियोंका सामान्य तिर्यंचोंके समान है। इसी प्रकार मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवोंमें जानना चाहिये । असंयतोंमें सामान्य तियंचोंके समान जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है। ६१५. अभव्योंमें छब्बीस प्रकृतियोंका भंग सामान्य तियेचोंके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भंग एकेन्द्रियोंके समान है । क्षायिकसन्यग्दृष्टियोंमें इक्कीस प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें चौबीस प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिये। किन्तु इतना विशेषता है कि इनमें अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव संख्यात हैं। तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य और अजघन्य स्थितितिभक्तिवाले जीव असंख्यात हैं । सासादन सम्यग्दृष्टियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। संज्ञियोंमें पंचेन्द्रियोंके ममान भंग है। अनाहारकोंमें कार्मणकाययोगियोंके समान भंग है । विशेषार्थ-पोषसे मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थिति क्षपकश्रेणीमें और सम्यक्त्वकी जघन्य स्थिति कृतकृत्यवेदक सम्यक्त्वके अन्तिम समयमें प्राप्त होती है और ऐसे जीवोंका प्रमाण संख्यात है, अतः उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिवाले जीवोंका प्रमाण संख्यात कहा। मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अजघन्य स्थितिवाले जीव अनन्त हैं यह स्पष्ट ही है। सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति उद्वेलनाके अन्तिम समयमें और कृतकृत्यवेदक सम्यक्त्वके उपान्त्य समयमें प्राप्त होती है और ऐसे जीवोंका प्रमाण असंख्यात है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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