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________________ ३५६ जयधवलासहिदे कस्मयपाहुढे । द्विदिविहत्ती ३. ६०१. जहण्णए पयदं । दुविहो णिद्देसो-अोघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० जह० सव्वजी० के० १ अणंतिमभागो । अज० सव्वजी० के ? अणता भागा । सम्मत्त०-सम्मामि० उक्कभंगो । एवं कायजोगि०-ओरालि०णवुस०-चत्तारिक०-अचक्खु०-भवसि०-आहारि त्ति । . ६०२. आदेसेण णेरइएमु सव्वपयडीणं जह० अज० उक्स्स भंगो । एवं सव्वपंचिं०तिरिक्ख-सव्वमणुस-सव्वदेव-सव्वविगलिंदिय-सव्वपंचिंदिय-चत्तारिकायबादरवणप्फदिपचेय०-सव्वतस-पंचमण-पंचवचि०-वेउब्विय०-वेउ०मिस्स०-आहार० आहारमिस्स०-इत्थि०-पुरिस०-अवगद०-अकसा०-विहंग०-आभिणि०-मुद०-ओहि०मणपज्ज०-संजद०-सामाइय- छेदो०- परिहार०-सुहुम० - जहाक्वाद० - संजदासंजदचक्खु०-ओहिदंस०-तिण्णिले०-सम्मादि०-खइय०-वेदय -उवसम-सासण-सम्मामि०सण्णि त्ति। ___६६०३. तिरिक्ख० णारयभंगो। णवरि अणंताणु०चउक्क०-सत्तणोक० ओघं । जानने चाहिये । तथा संख्यात संख्यावाली मार्गणाओंमें सब प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिवाले जीव संख्यात बहुभाग प्रमाण और उत्कृष्ट स्थितिवाले जीव संख्यात एक भागप्रमाण होते हैं। असंख्यात संख्यावाली और संख्यात संख्यावाली मार्गणाओंके नाम मूलमें गिनाये ही हैं। इस प्रकार उत्कृष्ट भागाभागानुगम समाप्त हुआ। ६०१. अब जघन्य भागाभागका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । ओघकी अपेक्षा मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्त बहुभाग हैं । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग उत्कृष्टके समान है। इसी प्रकार काययोगी, औदारिककाययोगी, नपुंसकवेदवाले, चारों कषायवाले, अचक्षुदर्शनवाले, भव्य और आहारकोंके जानना चाहिये। ६६०२. आदेशकी अपेक्षा सब नारकियोंमें सब प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिकी अपेक्षा भंग उत्कृष्टके समान है। इसी प्रकार सब पंचेन्द्रिय तिर्यंच, सब मनुष्य, सब देव, सब विकलेन्द्रिय, सब पंचेन्द्रिय, सब चार स्थावरकाय, सब बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर, सब त्रस, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, स्त्रीवेदवाले, पुरुषवेदवाले, अपगतवेदवाले, अकषायी, विभंगज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत, यथाख्यात संयत, संयतासंयत, चक्षुदर्शनवाले, अवधिदर्शनवाले, तीन लेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिये। ६६०३. तिर्यंचोंमें नारकियोंके समान भंग है । किन्तु इतनी विशेषता है कि उनमें अनन्तानुबन्धी चतुष्क और सात नोकषायोंकी अपेक्षा भंग ओघके समान है। इसी प्रकार कृष्ण, नील Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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