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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ पुरिस० मोह० जह० संखेजाणि। कोह-माण-माय० मोह० जह० चत्तारि-बे-एक्कवस्साणि पडिवुण्णाणि । सामाइय-छेदो० मोह० जह० अंतोमु० ।
एवमद्धाछेदो समत्तो । $ १८. सव्वविहत्ती-णोसव्वविहत्तीअणुगमेण दुविहो णिदिसो--अोघेण आदेसेण य। तत्थ अोघेण सव्वायो हिदीओ सव्वविहत्ती, तदणं णोसव्वविहत्ती। एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति ।
१९. उक्कस्स-अणुक्कस्स० दुविहो णिद्द सो-अोघेण अादसेण य । तत्थ ओघेण सव्वुक्कस्सिया हिदी उक्कस्सविहत्ती । तदूणा अणुक्कस्सविहती। एवं णेदव्वं जाव अणाहारए त्ति ।
२० जहण्णाजहण्ण • दुविहो णिद्देसो--ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण सवजहण्णहिदी जहण्ण हिदिविहत्ती । तदुवरिमाओ अजहण्णहिदिविहत्ती । एवं णेदव्वं जाव अणाहारए त्ति । सव्वहिदीए अद्धाछेदम्मि भणिदउक्कस्सहिदीए च को
वर्ष है। तथा क्रोधी, मानी और माया कषायवाले जीवोंके मोहनीयकी जघन्य स्थिति क्रमसे परिपूर्ण चार, दो और एक वर्ष है । सामायिक संयत और छेदोपस्थापना संयत जीवोंके मोहनीय कमकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त है।
विशेषार्थ-उक्त तीन वेदवाले और क्रोधादि तीन कषायवाले जीवोंके मोहनीयकी यह स्थिति क्षपकश्रेणिमें अपने अपने उदयके अन्तिम समयमें प्राप्त होती है, इसलिए इन मार्गणाओंमें मोहनीयका जघन्य अद्धाच्छेद उक्त प्रमाण कहा है।
इस प्रकार अद्धाच्छेद समाप्त हुआ । १८. सर्वविभक्ति और नोसर्वविभक्ति अनुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघनिर्देशकी अपेक्षा सर्व स्थितियाँ सर्वविभक्ति है और उससे न्यून नोसर्वविभक्ति है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणतक जानकर कथन करना चाहिये।
१६. उत्कृष्टविभक्ति और अनुत्कृष्टविभक्ति अनुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकार हैओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघनिर्देशकी अपेक्षा सबसे उत्कृष्ट स्थिति उत्कृष्टविभक्ति है और उससे न्यून स्थिति अनुत्कृष्टविभक्ति है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक कथन करना चाहिए।
२०. जघन्यविभक्ति और अजघन्यविभक्ति अनुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैओघनिर्देश और आदेशनिर्देश। उनमेंसे ओघनिर्देशकी अपेक्षा सबसे जघन्य स्थिति जघन्यस्थिति विभक्ति है और उससे ऊपरकी सब स्थितियाँ अजघन्य स्थितिविभक्ति है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गण तक ले जाना चाहिए।
शंका_सर्वस्थिति और अद्धाच्छेदमें कही गई उत्कृष्ट स्थितिमें क्या भेद है ?
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