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________________ vvvvvvvvvvvvvvvvvvvv २६६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिविहत्ती ३ ६५१७. तिरिक्खेसु मिच्छत्त-बारसक०-भय-दुगुंछा जह० ज० एगस०, उक्क० अंतोम० । अज० ज० एगस०, उक्क० असंखेज्जा लोगा। सम्मत्त०-सम्मामि० ज० जहण्णुक्क० एगस० । अज० जह० एगस०, उक्क० तिण्णि पलिदोवमाणि सादिरेयाणि । अयंतागु०चउक्क० [ज०] जहण्णुक्क० एयस० । अज० ज० अंतोमु० एयसमो वा, उक्क० अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । सत्तणोक० ज० जहण्णुक्क० एगस । अज० ज० खुद्दाभवग्गहणं, उक्क० अणंतकालमसंखे० पो०परिया। ६५१८.पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिंतिरि०पज्ज-पंचिंतिरि०जोणिणीसु मिच्छत्त०बारसकसाय-भय-दुगुंछ• जह० ज० एगस०, उक्क० वेसमया। अज० ज० खुद्दाभवगहणं [ अंतोमहुत् ] विसमऊणं एयमत्रो वा, उक्क० तिण्णि पलिदोवमाणि पुन्वकोडिपुधत्तेणब्भहियाणि । सम्मत्त०-सम्मामि० जह० जहण्णक्क० एगसमओ । अज. ज० एगस०, उक्क० सगहिदी। अणंताणु०चउक्क० जह० जहण्णुक्क० एगस० । अज० ज० अंतोम०, उक्क० सगहिदी। एवं सत्तणोकसायाणं । गवरि अणंताणु० अज० ज० एगसमी वा। अन्तिम समयमें प्राप्त होती है अतः इन प्रकृतियों की जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा । शेष कथन सुगम है। ६५१७. तिथंचोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूत है तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल असंख्यात लोक प्रमाण है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थिति का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल साधिक तीन पल्य है । अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तमुहूर्त या एक समय और उत्कृष्ट काल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहण प्रमाण और उत्कृष्ट अनन्त काल है जो असंख्यात पुगदल परिवर्तनप्रमाण है । ६५१८ पंचेन्द्रियतिर्यंच, पंचेन्द्रियतिथंच पर्याप्त और पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमतियों में मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल दो समय कम खुद्दाभवग्रहण प्रमाण, दो समय कम अन्तमुहूर्त या एक समय और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्य है । सम्यक्त्व और सम्याग्मथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जवन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अग्नी अपनी स्थिति प्रमाण है । अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल अपनी स्थिति प्रमाण है। इसी प्रकार सात नोकषायोंका जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय भी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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