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________________ २६४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ एगस०, अज० ज० एगस० । उक्क० सगहिदी । सत्तणोक० ज० जहण्णुक० एयस० । अज. ज. अंतोमु०, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि । अणंताणु० जह० जहण्णुक्क० एयस० । अज० जह• अंतोमु० एयसमयो वा, उक्क० सगहिदी । एवं पढमाए । णवरि सगहिदी। जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय और अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है। अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय और अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त या एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। इसी प्रकार पहली पृथिवीमें जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि यहाँ अपनी उत्कृष्ट स्थिति कहनी चाहिये । विशेषार्थ-जो असंज्ञी अपने योग्य जघन्य स्थितिके साथ दो मोड़े लेकर नरकमें उत्पन्न होता है उसके दूसरे मोड़में मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थिति पाई जा सकती है अतः नरकमें उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा इसके पहले मोड़में अजघन्य स्थिति पाई जाती है अतः उक्त प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय कहा है। तथा जो उक्त प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिके साथ नरकमें उत्पन्न होता है उसके उक्त प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल नरककी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण पाया जाता है। सम्यक्त्वकी जघन्य स्थिति नारकीके कृतकृत वेदक सम्यक्त्वके अन्तिम समयमें और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति उद्वेलनाके अन्तिम समयमें प्राप्त होती है, अतः नारकियोंके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा जिसके कृतकृत्यवेदकके काल में दो समय शेष हैं ऐसा जीव यदि मरकर नरकमें उत्पन्न होता है तो उसके सम्यक्त्वकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल । क समय पाया जाता है। तथा जिसके सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलनामें दो समय शेष हैं ऐसा जीव यदि मरकर नरकमें उत्पन्न होता है तो उसके सम्यग्मिथ्यात्वकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय पाया जाता है। इन दोनों प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल नरककी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है यह स्पष्ट ही है। नरकमें सात नोकषायोंकी जघन्य स्थिति वहाँ उत्पन्न होनेके अन्तर्मुहूर्त कालके पश्चात् एक समयके लिये प्राप्त हो सकती है, अतः सात नोकषायोंकी जघन्य स्थिति का जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा इसके पहले अन्तमुहूर्त काल तक अजघन्य स्थिति होती है, अतः सात नोकषायोंकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तमुहूर्त कहा है। तथा उत्कृष्ट काल नरककी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण होता है यह स्पष्ट ही है । अनन्तानुबन्धीकी जघन्य स्थिति विसंयोजनाके अन्तिम समयमें होती है, अतः नरकमें इसकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा जिसने विसंयोजनाके पश्चात् पुनः अनन्तानुबन्धीकी सत्ता प्राप्त कर ली है और अन्तमुहूर्त कालके भीतर पुनः उसकी विसंयोजना कर दी है उसके अनन्तानुबन्धीकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तर्मुहूतं पाया जाता है । तथा विसंयोजना किया हुआ जो जीव सासादनमें जाकर और दूसरे समयमें अन्य गतिको प्राप्त हो जाता है उसके अनन्तानुबन्धीकी अजवन्य स्थितिका जवन्य काल एक समय भी पाया जाता है। तथा उत्कृष्ट काल नरककी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है यह स्पष्ट ही है। पहले नरकमें इसी प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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