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गा० २२ ]
हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिकालो जहण्ण० अंतोमु, उक्क० अद्धपोग्गलपरियट्ट देसूणं । छण्णोकसायाणं जह० जहण्णुक्क० अंतोमु० । अजह० केव० १ अणादिअपज्जवसिदा अणादिसपज्जवसिदा । एवं भवसि० । णवरि अणादिअपज्जव० णत्थि ।
५१५. आदेसेण रइएसु मिच्छत्त०-बारस०-भय-दुगुंडाणं ज० जहण्णुक्क० एगस० । अज० ज० एगस०, उक्क. सगहिदी । सम्मत्त-सम्मामि० जह० जहएणुक० कथन किया जा रहा है। जयन्य काल अन्तमुहूते और उत्कृष्ट काल कुछ कम अधंपुद्गलपरिवतनप्रमाण है। छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। तथा अजघन्य स्थितिका कितना काल है ? अनादि-अनन्त और अनादि-सान्त काल है। इसी प्रकार भव्योंके जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि उनके किसी भी प्रकृतिका अनादि-अनन्त काल नहीं है।
विशेषार्थ-मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सोलह कषाय और तीन वेदोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है इसका खुलासा पहले किया ही है। तथा सम्यक्त्व
और सम्यग्मिथ्यात्वको छोड़कर इनकी अजघन्य स्थिति अनादि-अनन्त और अनादि-सान्त होती है, क्योंकि अभव्योंके उक्त प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थिति अनादि-अनन्त काल तक पाई जाती है । तथा जिन्होंने दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीयकी क्षपणा करते हुए उक्त प्रकृतियों की जघन्य स्थितिको प्राप्त कर लिया है उनके उक्त प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिका काल अनादि-सान्त है। किन्तु अनन्तान
धी चतुष्कका काल सादि-सान्त भी पाया जाता है। जिसने सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी सत्ता प्राप्त करके अन्तमुहूते कालमें उनकी क्षपणा कर दी है उसके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तमहतं पाया जाता है। तथा सम्यक्त्व
और सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट सत्त्वकाल पल्यके तीन असंख्यातवें भागोंसे अधिक एकसौ बत्तीस सागर है, अतः इनकी अजघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण समझना चाहिये । अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अजघन्य स्थितिका काल अनादि-अनन्त, अनादि-सान्त और सादि-सान्त इस तरह तीन प्रकारका पहले बतलाया ही है । जो अनादि कालसे अनन्त कालतक मिथ्यात्वमें पड़ा है उसके अनादि-अनन्त काल पाया जाता है । जिसने अनन्तानुबन्धी की विसंयोजना करते हुए जघन्य स्थिति प्राप्त कर ली उसके अनादि-सान्त काल पाया जाता है। तथा जिसने विसंयोजनाके पश्चात् पुनः अनन्तानुबन्धीका सत्त्व प्राप्त कर लिया उसके सादि-सान्त काल पाया जाता है। इनमें से सादि-सान्त कालकी अपेक्षा अनन्तानुबन्धीकी अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तमुहूर्त है, क्योंकि अनन्तानुबन्धीका सत्त्व प्राप्त होने पर एक अन्तमुहूर्तके भीतर विसंयोजना द्वारा पुनः उसका क्षय किया जा सकता है। तथा अनन्तानुबन्धीकी अजघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तनप्रमाण है यह स्पष्ट हो है । छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है यह पहले बतला ही आये हैं। तथा मिथ्यात्व आदिके समान छह नोकषायोंकी अजयन्य स्थितिका काल अनादि-अनन्त और अनादि-सान्त घटित कर लेना चाहिये । यह सब व्यवस्था भव्योंके बन जाती है, इसलिये इनके कथनको ओघके समान कहा। किन्तु इतनी विशेषता है कि भव्योंके सब प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिका अनादि-अनन्त यह विकल्प नहीं पाया जाता।
५१५. श्रादेशकी अपेक्षा नारकियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी
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