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________________ ना० २२ ] हिदिविहत्ती उत्तरपयडिट्ठिदिकालो २८३ ज० उक्क० सगसगुक्कस्सद्विदी । सम्मत्त सम्मामि० उक्क० जहण्णुक्क० एस० । अणुक० एगसमओ, उक्क० पलिदो ० असंखेज्जदिभागो । एवरि बादरपुढविश्रादिअपज्जत्ताणं सुहुम पुढवित्र्यादिपज्जत्तापञ्जाणं च सगहिदी वत्तव्वा । १५०१ पंचमण० - पंचवचि० मिच्छत्त - सोलसक० णवणोकसाय उक्क० पंचि - दियभंगो | अणुक्क० ज० एगसमत्रो, उक्क० अंतोमुहुतं । सम्मत - सम्मामि० उक्क० जहण्णुक० एगसमओ । अक० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । ओरालिय• एवं चेव वरि सगहिदी बचव्वा । ज० एस ०, ५०२, कायजोगि० मिच्छत्त- सोलसक० - णवरणोक० उक्क० श्रघं । अणुक्क ० उक्क० एइंदियभंगो । सम्मत सम्मामि० एइंदियभंगो । ओरालियमिस्स० मिच्छत - सोलसक० णवणोक० उक्क० जहण्णुक्क० एइंदियभंगो । मिच्छत्तसोलसक० अक्क० जह० खुदाभवग्गहणं तिसमऊणं । गवणोकसाय० जह० एयसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । सम्मत्त सम्मामि० पंचिदियअपजत्तभंगो । एवं वेडव्विय० णवरि मिच्छत्त - सोलसक० अणुक० ज० एगसमओ उक्क० अंतोमु० । तथा उत्कृष्टकाल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है । तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय और अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है । किन्तु इतनी विशेषता है कि बादर पृथिवीकायिक आदि अपर्याप्त जीवोंकी तथा सूक्ष्म पृथिवीकायिक आदि पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट काल अपनी स्थिति प्रमाण कहना चाहिये । $ ५०१ पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवोंके मिथ्यात्य, सोलह कषाय और कषायों उत्कृष्ट स्थितिका भंग पंचेन्द्रियोंके समान है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तमुहूर्त है । तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय और अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है । औदारिककाययोगी जीवोंके इसी प्रकार जानना चाहिये | किन्तु इतनी विशेषता है कि इनके अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्टकाल अपनी स्थिति प्रमाण कहना चाहिये । विशेषार्थ - पांचों मनोयोग और पांचों वचनयोगों का उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त तथा दारिकाय योगका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कम वाईस हजार वर्ष है, अतः इनके अनुसार अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट काल कहना चाहिये | शेत्र कथन सुगम है । ९५०२ काययोगियों में मिध्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति विभक्ति काल के समान है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्ट काल एकेन्द्रियों के समान है । तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग एकेन्द्रियोंके समान है। औदारिक मिश्र काययोगियोंमें मिध्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्टकाल एकेन्द्रियों के समान है । तथा मिथ्यात्व और सोलह कषायोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्यकाल तीन समयकम खुद भवग्रहणप्रमाण है और नौ नोकषायों का जघन्यकाल एक समय है तथा सबकी अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वका भंग पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकों के समान है । इस प्रकार वैक्रियक काययोगी जीवों के जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें मिथ्यात्व और सोलह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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