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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[हिदिविही ३ __४६३. तिरिक्खगदीए तिरिक्खेसु मिच्छत्त-सोलसक० उक्क० जह० एगसमो, उक्क० अंतोमहुत्त । अणुक्क० ज० एगसमो, उक्क० अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । णवणोक० उक्क० ज० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० एगावलिया। अणुक्क० ज० एगसमओ, उक्क० अणंतकालमसंखे० पोग्गलपरियहा । सम्मत्त०सम्मामि० उक्क. जहण्णुक्क० एगसमओ। अणुक्क० ज० एगसमओ, उक्क० तिण्णि पलिदोवमाणि सादिरेयाणि । ___४९४. पंचिंदियतिरिक्ख०-पंचिं०तिरि०पज०-पंचिं०तिरि०जोणिणीसु मिच्छत्तसोलसक०-णवणोकसाय. उक्क० ओघभंगो । अणुक्क० जहण्ण० एगसमओ, उक्क० सगहिदी । सम्मत्त-सम्मामि० उक्क० जहण्युक्क० एगस० । अणुक्क० ज. एगसमओ, उक्क० तिण्णि पलिदोवमाणि सादिरेयाणि । एवं मणसतियः । उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण पाया जाता है। इसी प्रकार प्रथमादि पृथिवियोंमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितियोंका काल कहना चाहिये । किन्तु सब प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट काल अपने अपने नरककी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण कहना चाहिये।
S४६३. तिथंचगतिमें तियेचोंमें मिथ्यात्व और सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहर्त प्रमाण है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय है और नपुंसकवेद आदि पाँचका उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त और स्त्रीवेद आदि चारका उत्कृष्ट काल एक आवलि प्रमाण है। तथा नौ नोकषायोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल साधिक तीन पल्य है।
४६४. पंचेन्द्रियतिर्यंच, पंचेन्द्रियतिथंच पर्याप्त और पंचेन्द्रियतिथंच योनिमतियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका काल ओघके समान है। तथा उक्त सब प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है । तथा सम्यक्त्व और सम्यग्यिथ्यात्बकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है और अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल साधिक तीन पल्य है। इसी प्रकार सामान्य मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनीके जानना चाहिये।
विशेषार्थ-तिथंच गतिमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल ओघके समान घटित कर लेना चाहिये । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल जिस प्रकार नारकियोंमें घटित करके बतला आये हैं उसी प्रकार यहाँ भी जानना चाहिये । हाँ अनुत्कृष्ट स्थिति के उत्कृष्ट कालमें कुछ विशेषता है । तियेच पर्यायमें निरन्तर रहनेका उत्कृष्टकाल असंख्यात पुद्गल परिवर्तन है, अतः मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट काल भी इतना ही प्राप्त होता है । तथा सन्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट काल साधिक तीन पल्य है, क्योंकि पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंमें रहनेका उत्कृष्ट काल पृथक्त्व पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य है अतः उस कालमें पुनः पुनः सम्यक्त्वके होनेसे सम्यक्त्व व सम्यग्मिथ्यात्वका
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