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________________ गा० २२] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिडिदिसामित्त રક્ષક ४५८. सत्तमाए पुढवीए मिच्छत्त-बारसक० जहरू कस्स ? अण्ण० जो उक्कसाउहिदि बंधिय सत्तमाए उववएणो । पुणो अंतोमुहुत्तेण सम्म पडिवज्जिय अवरेण अंतोमुहुत्तेण अणंताणुबंधिचउक्क विसंजोइय थोवावसेसे जीविए मिच्छनं गदो। मिच्छशेण जावदि सक्कं तावदियकालं हिदिसंतकम्मस्स हेढदो बंधिय समहिदि बोलेहदि त्ति तस्स जहण्णहिदिविहत्ती । भयदुगुंछाणमेवं चेव । णवरि समहिदि बंधिय आवलियाइक्कंतस्स तस्स जहण्णहिदिविहत्ती। सत्तणोक० एवं चेव । णवरि पडिवक्खबंधगद्धाश्री बंधाविय तेसिं चरिमसमए वतस्स जहण्णहिदिविहत्ती । सम्मत्त०-सम्मामि०-अणंताणुछउक्काणं विदियपुढविभंगो। ४५९. तिरिक्खेसु मिच्छत्त-वारसक० ज० कस्स ? अण्ण० जो बादरएइंदिओ जहासत्तीए डिदिघादं कादूण जावदियं सक्कं तावदियं कालं हिदिसंतकम्मस्स हेहा बंधिय समद्विदिबंधं से काले वोलेहदि दिा तस्स जहण्णहिदिविहत्ती । भय-दुगुंठाणमेवं चेव । णवरि समद्विदिबंधादो आवलियाइक्कतस्स । सत्तणोकसाय. जह० कस्स ? अण्ण० जो बादरेइंदिनो समद्विदिबंधमाणकाले पंचिंदियतिरिक्खेसु उववण्णो दीहपडिवक्खबंधगद्धामेत्तहिदिगालणह अंतोमहुचेण अप्पप्पणो पडिवक्खबंधगद्धाणचरिमसमए Swarranwwwnnar ६४५८. सातवी पृथिवीमें मिथ्यात्व और बारह कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? जो उत्कृष्ट आयुको बाँधकर सातवीं पृथिवीमें उत्पन्न हुआ है। पुनः अन्तमुहूर्त कालके द्वारा सम्यक्त्वको प्राप्त होकर एक दूसरे अन्तर्मुहूर्तके द्वारा अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजना करके जीवितके थोडा शेष रहने पर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। पनः मिथ्यात्व में जितने कालतक शक्य हो उतने कालतक स्थितिसत्कर्मसे कम स्थितिका बन्ध करके जो अगले समयमें सत्त्वस्थितिसे अधिक बन्धस्थिति करेगा उसके जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। भय और जुगुप्साकी इसी प्रकार जाननी चाहिये। इतनी विशेषता है कि समान स्थितिको बाँधकर एक आवलीप्रमाण कालको अतिक्रान्त करनेवाले जीवके जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। सात नोकषायोंकी इसी प्रकार जाननी चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है प्रतिपक्ष प्रकृतियोंके बन्धक कालतक उन्हें बँधाकर उनके अन्तिम समयमें रहनेवाले जीवके जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। यहाँ सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग दूसरी पृथिवीके समान है। ४५६. तिर्यंचोंमें मिथ्यात्व और बारह कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? जो कोई बादर एकेन्द्रिय नीव शक्त्यनुसार स्थितिघात करके जितने कालतक शक्य हो उतने कालतक स्थितिसत्कर्मसे हीन नवीन स्थितिको बाँधकर अनन्तर समयमें समान स्थितिबन्धको उल्लंघन करेगा उसके जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। भय और जुगुप्साकी इसी प्रकार जाननी चाहिये। किन्तु इतनी विशेता है कि समान स्थितिबन्धके बाद जिसने एक आवली काल व्यतीत कर दिया है उसके जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? जो कोई एक बादरएकेन्द्रिय जीव स्थितिसत्त्वके समान स्थितिबन्धके होनेके समय पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंमें उत्पन्न हुआ। पुनः दीर्घ प्रतिपक्ष बन्धक कालप्रमाण स्थितियोंको गलानेके लिये अन्तमुहूर्त कालतक अपने-अपने प्रतिपक्ष बन्धककाल में रहकर प्रतिपक्ष बन्धककाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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