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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिविहत्ती ३ विचो परिमाणं खेत्त पोसणं कालो अंतरं सरिणयासो अप्पाबहुअं च भुजगारो पदणिक्खेवो वढी च । ___७. एदाणि मूलपयडिहिदिविहत्तीए अणियोगद्दाराणि । एत्थ अंतिल्लो 'च'सद्दो उत्तसमुच्चयहो। अप्पाबहुअअंते हिदो ‘च सद्दो अवुत्तसमुच्चयहो । तेण एदेसु अणियोगद्दारेसु अवुत्तस्स अद्धाछेदाणिओगद्दारस्स भागाभागभावाणिओगद्दाराणं च गहणं कदं । एत्थ मूलपयडि हिदिविहत्तीए जदि वि सण्णियासो ण संभवइ तो वि उत्तो; उत्तरपयडीसु तस्स संभवदंसणादो । एत्थ मोत्त ण तत्थेव किण्ण वुच्चदे ? सच्चं, तत्थ चेव वुत्तो ण एत्य । जदि एवं, तो किण्णावणिज्जदे ? ण, मूलुत्तरपयडिहिदिविहत्तीणं साहारणभावेण परूविदाणिओगद्दारेसु हिदसण्णियासस्स अवणयणुवायाभावादो।
8 एदाणि चेव उत्तरपयडिहिदिविहत्तीए कादवाणि ।
६८. सुगममेदं;अणूणाहियाणमेदेसि तत्थ संभवादो ? संपहि एदेसिमणियोगदारेहि मूलपयडिहिदिविहत्ती वुच्चदे । तं जहा,अद्धाच्छेदो दुविहो-जहण्णओ उक्स्सओ की अपेक्षा भंगविचय, परिमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, सन्निकर्ष और अल्पबहुत्व तथा भुजगार, पदनिक्षेप और वृद्धि ।
७. ये मूलप्रकृति स्थिति विभक्तिके विषयमें अनुयोगद्वार होते हैं। इस सूत्रमें जो अन्तमें 'च' शब्द आया है वह उक्त अर्थ के समुच्चयके लिए आया है। तथा अल्पबहुत्व पदके अन्तमें जो 'च' शब्द स्थित है वह अनुक्त अर्थके समुच्चयके लिए आया है, इसलिए इस 'च' शब्दके द्वारा इन उपर्युक्त अनुयोगद्वारोंमें अनुक्त अद्धाच्छेद अनुयोगद्वार तथा भागाभाग और भाव अनुयोग द्वारोंका ग्रहण किया गया है।
यद्यपि यहाँ मूलप्रकृतिस्थितिविभक्तिमें सन्निकर्ष अनुयोगद्वार सम्भव नहीं है तो भी वह यहाँ पर कहा गया है, क्योंकि उत्तर प्रकृतियोंमें उसकी सम्भावना देखी जाती है।
शंका-सन्निकर्ष अनुयोगद्वारको यहाँ न कह कर वहीं उत्तर प्रकृतियों के प्रकरणमें क्यों नहीं कहा है ?
समाधान यह ठीक है, क्योंकि सन्निकर्ष अनुयोगद्वारको वहीं उत्तर प्रकृतियों के प्रकरणमें ही कहा है यहाँ मूल प्रकृति के प्रकरणमें नहीं।
शंका-यदि ऐसा है तो यहाँ से उसे क्यों नहीं अलग कर दिया जाता है ?
समाधान नहीं, क्योंकि मूलप्रकृतिस्थितिविभक्ति और उत्तरप्रकृतिस्थितिविभक्ति इन दोनोंके विषयमें साधारणरूपसे ये अनुयोगद्वार कहे गये हैं, इसलिये इनमें स्थित सन्निकर्षको अलग करनेका कोई कारण नहीं है।
* उत्तरप्रकृतिस्थितिविभक्तिके विषयमें ये ही अनुयोगद्वार कहने चाहिये ।
८. यह सूत्र सुगम है, क्योंकि न्यूनता और अधिकतासे रहित ये सभी अनुयोगद्वार उत्तर प्रकृतिस्थितिविभक्तिके विषयमें संभव हैं।
अब इन अनुयोगद्वारोंके द्वारा मूलप्रकृतिस्थितिविभक्तिका कथन करते हैं । यथा-जघन्य और उत्कृष्टके भेदसे अद्धाच्छेद दो प्रकारका है।
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