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गा. २२ ] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिअद्धाच्छेदो
२१५ कुणमाणद्धाए वि सव्वुक्कस्सयं हिदिघादं कादूण पुणो उक्कस्साउअमणुपालिय णिप्पियमाणसम्माइहिचरिमसमए अंतोकोडाकोडीसागरोवममेत्तहिदीओ जहण्णअद्धाच्छेदो।
वरि णवुसयवेदं मोत्तूण अण्णासि सव्वपयडीणं परोदएण जहण्णश्रद्धच्छेदो वत्तव्यो । कुदो ? उदयहिदीए थिवुक्कसंकमेण गदाए जहण्णत्तु ववचीदो।
६ ३८६. एवं सत्तमाए वि वत्तव्यं । णवरि मिच्छत्तस्स जहण्णअद्धाच्छेदे भण्णमाणे पढमसम्मत्तग्गहणेण अणंताणुबंधिचउक्कविसंयोजणाए च सव्वुक्कस्सयं हिदिघादं कादूण सम्मत्तेण सह तेत्तीससागराउअमणुपालिय तदो अंतोमुहुत्तावसेसे आउए मिच्छत्तं गंतूण अंतोमुहुत्तकालं संतस्स हेहा बंधिय पुणो संतसमाणट्ठिदि बंधमाणचरिमसमए अंतोकोडाकोडिसागरोवममेत्तहिदीओ घेत्त ण जहण्णअद्धाच्छेदो होदि । एवं सोलसकसाय-भय-दुगुंछाणं । सत्तणोकसायाणं पि एवं चेव । णवरि मिच्छ गंतूण जहण्णहिदिसंतसमाणबंधे संजादे अप्पप्पणो पडिवक्खबंधगद्धाओ बंधाविय तासिं चरिमसमए जहण्णअद्धाछेदो वत्तव्यो ।
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करनेके समय भी सर्वोत्कृष्ट स्थितिघात करके पुनः उत्कृष्ट आयुका पालन करके जो सम्यग्दृष्टि नरकसे निकलना चाहता है उसके नरकसे निकलनेके अन्तिम समय में बारह कषाय और सात नोकषायोंका अन्तः कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण जघन्यस्थिति अद्धाच्छेद होता है। इतनी विशेषता है कि नपुंसकवेदको छोड़कर अन्य सभी प्रकृतियोंका परोदयसे जघन्य स्थितिअद्धाच्छेद कहना चाहिये, क्योंकि स्तिवुकसंक्रमणके द्वारा उदयस्थितिके कम हो जाने पर जघन्यपना बन जाता है।
३८६. इसी प्रकार सातवीं पृथ्वीमें भी कहना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका कथन करते समय जो प्रथम सम्यक्त्वका ग्रहण करनेसे और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजना करनेसे सर्वोत्कृष्ट स्थितिघात करके सम्यक्त्वके साथ तेतीस सागर आयुका पालन करके तदनन्तर आयुके अन्तमुहूर्त कालप्रमाण शेष रहने पर मिथ्यात्वको प्राप्त होकर सत्तामें स्थित कर्मसे कम स्थितिवाले कर्मका बन्ध करके पुनः सत्तामें स्थित कर्मके समान स्थितिवाले कर्मका बन्ध करता है उसके अन्तिम समयमें अन्तःकोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण स्थितिकी अपेक्षा जघन्यस्थिति श्रद्धाच्छेद होता है। इसी प्रकार सोलह कषाय, भय और जुगुप्साका जघन्यस्थिति अद्धाच्छेद कहना चाहिये । तथा इसी प्रकार सात नोकषायोंका भी कहना चाहिये। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वको प्राप्त होकर जघन्य स्थिति सत्त्वके समान बन्धके होने पर अपनी अपनी प्रतिपक्ष प्रकृतियोंका बन्ध कराके उनके बन्धकालके अन्तिम समयमें सात नोकषायोंका जघन्यस्थिति अद्धाच्छेद कहना चाहिये।
विशेषार्थ—जो असंज्ञी जीव मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साके जघन्य स्थिति सत्त्वके साथ नरकमें उत्पन्न हुआ है उसके विग्रहके दूसरे समयमें उक्त कर्मोंकी जघन्य स्थिति विभक्ति होती है । विग्रहगतिके दूसरे समयमें कहनेका कारण यह है कि शरीरग्रहण करनेके पश्चात् इसके संज्ञी पंचेन्द्रियके योग्य स्थितिका बन्ध होने लगता है। किन्तु विग्रहगतिमें ऐसा जीव असंज्ञीके योग्य स्थितिका ही बन्ध करता है। मिथ्यात्वादिकी जघन्य स्थिति मूलमें बतलाई
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