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________________ ३१४ trader हिदे कसा पाहुडे एदा बंधा चदुगदिजहण्णश्रद्धाच्छेदस्स साहणीओ होंति । ९३== सम्पत्त - सम्मामिच्छत्त-अनंत। णुबंधिच कारणं श्रघभंगो। एवरि सम्मतं गिरएसुप्पण्णकदकर णिज्जस्स चरिमसमए जहां होदि । सम्मामिच्छत्तमुव्वेल्लरणाए वत्तव्वं । एवं पढमाए भवण० - वाण० । वरि भवरणवासिय वाणवैतरेसु सम्मत्तस्स सम्मामिच्छत्तभंगो । विदियादि जाव छहि त्ति मिच्छत्तस्स जहण्णद्विदिश्रद्धाच्छेदे भण्णमाणे मिच्छाही अणपणो गिरएस उपजिय पज्जत्तयदो होदूण उवसमसम्मतं गण्हमाणेण जेण सव्वुक्कस हिदिघादो कदो, पुणो अंतोमुहुतं गंतूण श्रताणुबंधिचक्क विसंजोएमाणेण जेण उकस्सओ हिदिघादो कदो तस्स सगसगुकस्सा उअमेत्तsarasaगलगाए गालिय सगाउअचरिमसमए वट्टमाणस्स अंतोकोडाकोडीसागरोवममेतद्विदीओ मिच्छत्तस्स जहण्णओ श्रद्धाच्छेदो । एवं इत्थि एवं सयवेदाणं । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त-प्रणताणुबंधि चउक्कारणमोघभंगो । गवरि सम्मत्तस्स भवण० भंगो; उज्वेल्लणाए जहण्ण श्रद्धाच्छेदग्गहणादो । बारसकसाय - सत्तणोकसायाणं उवसमसम्मत्तगहणकाले सकसयं द्विदिवादं काढूण पुणो अरांताणुबंधिचउकस्स विसंजोय - [ द्विदिविहत्ती ३ बन्धकाल चारों गतियों के जघन्य कालके साधक होते हैं । अर्थात् इनसे चारों गतियोंका जघन्य स्थिति श्रद्धाछेद निकाला जाता है । Jain Education International • 1 ९ ३८८. नारकियोंमें सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थिति के समान है । पर इतनी विशेषता है कि नारकियों में उत्पन्न हुए कृतकृत्यवेदक के अन्तिम समयमें सम्यक्त्वकी जघन्य स्थिति होती है । तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलनाके समय जघन्यस्थिति कहनी चाहिये । इसी प्रकार पहली पृथिवीके नारकी, भवनवासी और व्यन्तरोंके कथन करना चाहिये । पर इतनी विशेषता है कि भवनवासी और व्यन्तरोंके सम्यक्त्वकी जघन्यस्थिति सम्यमिथ्यात्व के समान होती है । दूसरे नरकसे लेकर छटे नरक तक मिथ्यात्व की जघन्य स्थितिके श्रद्धाच्छेदका कथन करनेपर जो मिध्यादृष्टि जीव अपने अपने नरकमें उत्पन्न हुआ और वहाँ पर्याप्त होकर जिसने उपशमसम्यक्त्वको ग्रहण करते हुए सबसे उत्कृष्ट स्थितिघात किया पुनः अन्तर्मुहूर्तकाल व्यतीत करके अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजना के हेतु जिसने उत्कृष्ट स्थितिघात किया वह अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण स्थितियोंको अधः स्थितिगलनाके द्वारा गलाता हुआ जब अपनी अन्तिम समय में विद्यमान रहता है तब उसके अन्तःकोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण मिध्यात्वका जघन्यस्थितिद्वाच्छेद होता है ! इसी प्रकार स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका जघन्यस्थिति काल कहना चाहिये । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग ओघ के समान है । saat विशेषता है कि सम्यक्त्वको जघन्य स्थिति भवनवासियों के समान है, क्योंकि यहाँ उद्वेलनाके द्वारा प्राप्त होनेवाले जघन्य स्थिति अद्धाच्छेदका ग्रहण किया है । उपशमसम्यक्त्वके ग्रहण करने के समय सर्वोत्कृष्ट स्थितिघात करके पुनः अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजना १. श्र०प्रतौ श्रद्धहिदि- इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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