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________________ गा० २२ ] द्विदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिअद्धाच्छेदो २०५ त्ति घेत्तव्यं । कुदो ? साहावियादो । सम्मामिच्छत्तस्स उव्वेल्लणाए वि जहण्णहिदिविहत्ती होदि । चरिमुव्वेल्लणकंडयचरिमफालीए पदिदाए तत्थ वि दुसमयकालेगणिसेगहिदीए उवलंभादो। ___* सम्मत्त-लोहसंजलण-इत्थि-णवुसयवेदाणं जहण्णहिदिविहत्ती एगा हिदी एगसमयकालढिदिया । ३७३. सम्मत्तस्स एगा हिदी एगसमयकालपमाणा जहण्णहिदिविहत्ती होदि त्ति जं मुत्ते भणिदं तस्स विवरणं कस्सामो। तं जहा-सम्मामिच्छत्तचरिमफालियाए सम्मत्तम्मि संकामिदाए सम्मत्तस्स अहवस्सहिदिसंतकम्मं होदि । पुणो एवंविहहिदिसंतकम्ममंतोमहत्तमेत्तहिदिकंडयपमाणेण घादयमाणो सम्मत्तस्स अणुसमयअोवट्टणं च कुणमाणो ताव गच्छदि जाव संखे जहिदिकंडयसहस्साणि गदाणि त्ति । तदो तेसु गदेसु सम्मत्तचरिमफालिमागाएंतो कदकरणिजकालमेत्ताओ हिदीओ मोत्तण आगाएदि । पुणो तं घेत्तूण गुणसेढिणिक्खेवेण णिक्खिचे अणियट्टिकरणं समपदि । तदो अणुसमयमोवट्टणं करेमाणो उदयावलियपविहिदीश्रो ताव गालेदि जाव एगा हिदी एगसमयकालपमाणा उदयम्मि हिदा त्ति । ताधे सम्मत्तस्स जहण्णहिदिविहत्ती होदि । सम्मा अन्तिम समयमें प्राप्त होता है ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि इनका ऐसा स्वभाव है। तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलनामें भी जघन्य स्थिति विभक्ति होती है, क्योंकि अन्तिम उद्वेलनाकाण्डककी अन्तिम फालिके पतन होने पर वहां भी एक निषेककी दो समय प्रमाण स्थिति पाई जाती है। * सम्यक्त्व, लोभसंज्वलन, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी एक स्थिति जघन्य 7 स्थिति विभक्ति होती है, जिसका स्थितिकाल एक समय है। ९३७३. सम्यक्त्वकी एक स्थिति एक समय प्रमाण काल तक रहनेवाली जघन्य स्थिति विभक्ति होती है, इस प्रकार जो सूत्र में कहा है, अब उसका विवरण करेंगे ।जो इस प्रकार है जब सम्यग्मिथ्यात्वकी अन्तिम फालिका संक्रमण सम्यक्त्वमें होता है तब सम्यक्त्वका आठ वर्ष प्रमाण स्थिति सत्कर्म होता है। पुनः यह जीव सम्यक्त्वके इस प्रकार स्थित स्थितिसत्कर्मका अन्तमुहूर्त प्रमाण स्थितिकाण्डकके द्वारा घात करता हुआ और प्रत्येक समयमें अपवर्तना करता हुआ तब तक जाता है जब जाकर संख्यात हजार स्थितिकाण्डक व्यतीत हो जाते हैं। तदनन्तर उन संख्यात हजार स्थितिकाण्डकों के व्यतीत होने पर यह जीव सम्यक्त्वकी अन्तिम फालिको प्राप्त होता हुआ उसमेंसे कृतकृत्यवेदकके काल प्रमाण स्थितियों को छोड़कर शेषको ग्रहण करता है। पुनः इसके कृतकृत्यवेदक कालप्रमाण स्थितियोंको छोड़कर और शेषको ग्रहण करके उनका गुणश्रेणीरूपसे निक्षेप कर देने पर अनिवृत्तिकरण समाप्त होता है। तदनन्तर उनका प्रत्येक समयमें अपवर्तन करता हुआ उद्यावलिमें स्थित स्थितियोंकी तब तक निर्जरा करता है जब जाकर उदयमें स्थित एक स्थिति एक समय काल प्रमाण प्राप्त होती है। और इसी समय सम्यक्त्वकी जघन्य स्थिति विभक्ति होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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