SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिविहत्ती ३ हिदिअद्धाछेदो सत्तरि सागरोवमकोडाकोडीओ अंतोमुहुत्त णाओ। सोलसकसाय-णवणोकसायाणं उक्कस्सअदाछेदो चत्तालीससागरोवमकोडाकोडीओ अंतोमुहुत्त णाओ। एवं मणुसअपज्ज-बादरेइंदियअपज्ज-मुहुमेइंदियपज्जत्तापज्जत्त-सन्धविगलिंदिय-पंचिंदियअपज०-बादरपुढविअपज्ज० - सुहुमपुढविपज्जत्तापज्जत्त - बादराउअपज्ज० - मुहुमाउपज्जत्तापज्जत्त-सव्वतेउ०-सव्ववाउ०-बादरवणप्फदिपचेयसरीरअपज्ज०-मुहुमवणप्फदि०पज्जत्तापज्जत्त-सव्वणिगोद-तसअपज.-आभिणि सुद०-ओहि०-ओहिदंस-मुक्कलेस्सासम्मादि०-वेदय०-सम्मामिच्छादिहि त्ति । ६३६८. आणदादि जाव सबढ० सव्वपयडीणमुक्क० अद्धाछेदो अंतोकोडाकोडी०। एवमाहार०-आहारमिस्स०-अषगद०-अकसा-मणपज्ज०-संजद-सामाइय-छेदो०परिहार०-सुहुमसांपराय० - जहाक्खाद० - संजदासंजद-खइय-उवसम० - सासणसम्मादिहि त्ति । $ ३६९. एइंदिएसु मिच्छत्तु क० सत्तरिसागरोवमकोडाकोडीओ समऊणाओ। सम्मत्तसम्मामिच्छत्तणवणोकसायाणमोघं । सोलसक० उक्क० चत्तालीस० कोडाकोडीओ समयणाओ। एवं बादरेइंदिय-बादरेइंदियपज्ज०-पुढवि०-बादरपुढवि०-बादरपुढविपज्ज०आउ०-बादरआउ०-बादरआउपज्ज०-बादरवणप्फदिपय०-बादरवणप्फदिपत्रेयपज्ज०उत्कृष्ट स्थिति अन्तमुहूर्त कम सत्तर कोडाकोड़ी सागर है। तथा सोलह कषाय और नौ नोककषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त कम चालीस कोड़ाकोड़ी सागर है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्तक, बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तक, सूक्ष्म एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक, सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तक, सब विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक, बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्तक, सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म पृथिवीकायिक पर्याप्तक, सूक्ष्म पृथिवीकायिक अपर्याप्तक, बादर जलकायिक अपर्याप्तक, सूक्ष्म जलकायिक, सूक्ष्म जलकायिक पर्याप्तक, सूक्ष्म जलकायिक अपर्याप्तक, सब अग्निकायिक, सब वायुकायिक, बादर वनस्पति प्रत्येक शरीर अपर्याप्तक, सूक्ष्म वनस्पति, सूक्ष्म वनस्पति पर्याप्तक, सूक्ष्म वनस्पति अपर्याप्तक, सब निगोद, बस अपर्याक, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिध्यादृष्टि , जीवोंके जानना चाहिये। ६३६८. आनत कल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सभी कृतियोंकी उत्कृष्ट स्थिति अन्तःकोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण होती है। इसी प्रकार आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, अकषायी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत, यथाख्यातसंयत, संयतासंयत, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये। ६३६६. एकेन्द्रियोंमें मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति एक समय कम सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति ओघके समान है। तथा सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति एक समय कम चालीस कोड़ाकोड़ी सागर है। इसी प्रकार बादर एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त, पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, जलकायिक, बादर जलकायिक, बादर जलकायिक पर्याप्त, बादर वनस्पति प्रत्येक शरीर, Momew M wwwwwwwww Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy