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________________ उपर गा० २२] द्विदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिविहत्तिपरूवणा १६१ उत्तरपयडिहिदिविहत्ती ॐ उत्तरपयडिहिदिविहत्तिमणुमग्गइस्सामो। $ ३५६. एदं जइवसहाइरियस्स पइज्जावयणं । ण चेसा पइज्जा णिप्फला, सिस्साणं परूविज्जमाणअहियारावगमणफलत्तादो । अहियारो किमिदि जाणाविजदे ? सिस्समणोगयसंदेहविणासणह । 8 तं जहा । तत्थ अट्ठपदं-एया हिदी हिदिविहत्ती अणेयाओ हिदीओ हिदिविहत्ती। ६ ३५७. परूविज्जमाणहिदिविहत्तीए एदमपदं जइवसहाइरिएण किम परू विदं ? हिदिविहत्तिसरूवावगमण। एया कम्मस्स हिदी एया हिदी णाम । कथमणेयाणं पदेसभेदेण भिण्णाणं हिदीणमेयत्तं ? ण, पयडिभावेण सव्वपदेसाणमेयत्तु वलंभादो । चरिमणिसेयहिदिपरमाणूणं सव्वेसिं कालमस्सिदूण सरिसत्तदसणादो वा एयत्तं । एसा एगा हिदी हिदिविहत्ती होदि । समयूण-दुसमयणादि उत्तरप्रकृतिस्थितिविभक्ति * अब उत्तरप्रकृति स्थितिविभक्तिका विचार करते हैं । ६३५६. यह यतिवृषभ आचार्यका प्रतिज्ञावचन है। यदि कोई कहे कि यह प्रतिज्ञा निष्फल है सो भी बात नहीं है, क्योंकि शिष्योंको कहे जानेवाले अधिकारका ज्ञान कराना इसका फल है। शंका-अधिकारका ज्ञान क्यों कराया जाता है ? समाधान-शिष्योंके मनमें उत्पन्न हुए सन्देहको नष्ट करानेके लिये अधिकारका ज्ञान कराया जाता है। * जो इस प्रकार है। उसके विषयमें यह अर्थपद है-एक स्थिति भी स्थितिविभक्ति है और अनेक स्थितियाँ भी स्थितिविभक्ति हैं। ३५१. शंका-कही जानेवाली स्थितिविभक्तिका यह अर्थपद यतिवृषभ आचार्यने किसलिए कहा ? समाधान-स्थितिविभक्तिके स्वरूपका ज्ञान कराने के लिये यतिवृषभ आचार्यने यह अर्थपद कहा है। कर्मकी एक स्थितिको एक स्थिति कहते हैं। शंका-प्रदेशोंके भेदसे भेदको प्राप्त हुईं अनेक स्थितियोंमें एकत्व कैसे बन सकता है ? समाधान-नहीं, क्योंकि प्रकृति सामान्यकी अपेक्षा सभी प्रदेशोंमें एकत्व पाया जाता है । अथवा अन्तिम निषेककी स्थितिको प्राप्त हुए सब परमाणुओंमें कालकी अपेक्षा समानता देखी जाती है, अत: उनमें एकत्व बन जाता है। यह एक स्थिति भी स्थितिविभक्ति होती है, क्योंकि एक समय कम और दो समय कम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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