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________________ १५८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे. [द्विदिविहत्ती ३ ३४९. सव्व विगलिंदिएसु सव्वत्थोवा संखे गुणहाणिवि हत्तिया जीवा । संखे भागवड्डि-हाणिवि० जीवा दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा । असंखे०भागवडिवि० जीवा असंखे०गुणा । अवहिदवि० जीवा असंखे गुणा । असंखे भागहाणिवि० जीवा संखे गुणा । चदुहं कायाणमेइंदियभंगो। णवरि जम्मि अणंतगुणं तम्मि असंख०गुणं कायव्वं । तस-तसपज्जत्ताणमोघभंगो। णवरि जम्मि अणंतगुणं तम्मि असंख० गुणं । एवं तस०अपज्ज । णवरि असंखेगुणहाणी णत्थि । ३५० पंचमण-पंचवचि. सव्वत्थोवा असंखे० गुणहाणि वि० जीवा । सेसं विदियपुढविभंगो। एवमोरालि०। णरि जम्मि असंखे गुणं तम्मि अणंतगुणं कायव्वं । वेउब्धिय विदियपुढविभंगो । उब्धियमिस्स० पढमपुढविभंगो । आहार०आहारमिस्स०-अकसा०-जहाक्रवाद० उवसम०-सासण० णत्थि अप्पाबहु।। ३५१. अवगद० सव्वत्थोवा संखे गुणहाणि जीवा। संख०भागहाणि जीवा संखे०गुणा । असंखेजभागहाणि जीवा संखे गुणा । एवं सुहुमसांपरा० । $३५२. आभिणि-सुद०-ओहि० सव्वत्थोवा असंखेजगुणहाणि० जीवा । संखेज्जगुणहाणि० जीवा असंखे गुणा। संखे०भागहाणि जीवा संखे गुणा । असंखे० ६३४६. सभी विकलेन्द्रियों में संख्यातगुणहानिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानि इन दोनों पदवाले जीव परस्पर समान होते हुए संख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। चारों कायवाले जीवोंके एकेन्द्रियोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि एकेन्द्रियोंके जिस स्थानमें अनन्तगुणा कहा है वहां इ असंख्यातगणा करना चाहिये। त्रस और त्रसपर्याप्त जीवोंके ओघके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि अोघमें जहां अनन्तगुणा है वहां इनके असंख्यातगुणा करना चाहिये । इसी प्रकार त्रस अपर्याप्तकोंके जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके असंख्यातगुणहानि नहीं है। ६ ३५०. पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवोंमें असंख्यातगुणहानिवाले जीव सबसे थोड़े हैं । शेष कथन दूसरी पृथिवीके समान है । इसी प्रकार औदारिककाययोगी जीवोंके जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि मनोयोगी और वचनयोगियोंमें जहाँ असंख्यातगुणा है वहाँ औदारिककाययोगियोंके अनन्तगुणा करना चाहिये । वैक्रियिककाययोगियोंमें दूसरी पृथिवीके समान भंग है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें पहली पृथिवीके समान भंग है। आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अकषायी, यथाख्यातसंयत, उपशमसम्यग्दृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके अल्पवहुत्व नहीं है। ६ ३५१. अपगतवेदियोंमें संख्यातगुणहानिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातभागहानिवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार सूक्ष्मसांपरायिकसंयत जीवोंके जानना चाहिये। ६ ३५२ आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें असंख्यातगणहानिवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे संख्यातगुणहानिवाले जीव असंख्यातगणे हैं। इनसे संख्यातभाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001409
Book TitleKasaypahudam Part 03
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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